पागलपन सा सवार था उस पर
न जाने क्या क्या कह गया
कुछ पता नहीं चला की किस से कह रहा है ये सब
माँ के आँख से निकला एक आंसू भी नहीं दिखा उसे
जब कुछ शांत हुआ तो एक पीड़ का एहसास
खाने लगा उसे
अपनी कही गयी बाते वापस लेना चाहता था
जैसे एक फोड़ा फूट जाता है और उसका मवाद
मन घिनौना सा कर देता है कुछ
वही एहसास उसके अंदर बढ़ता जा रहा था
गुस्से में कही बाते ,कह तो दी जाती है
पर उसका वजूद रह जाता है हमेशा के लिए
यही सोचते सोचते उसको नींद आ गयी
सुबह गीले तकिये को माँ ने धूप में सुखाया
और उसको गले लगा के बोली
बेटा चलो खाना खा लो.
रविवार, 2 मई 2010
शनिवार, 1 मई 2010
अपने जैसा........!
कसमसा के रह गया मै
कुछ कहना चाहता था , नहीं कह पाया
बात आई गयी हो गयी
टीस एक रह गयी मन में फिर भी
गुस्सा दबा रह गया मन में ही
इसी तरह इकठ्ठा की गयी चीज़ें
भारी कर देती है दिल मेरा
कभी कभी मन करता है निकल दूं सारा गुस्सा
सारा ज़हर जो रगों में दौड़ रहा है
और फिर से एक मासूम बच्चा बन जावूँ
फिर से नयी कलम से कुछ लिखू नया
फिर से इन आँखों से कुछ पुराना पढूं
और इसी तरह जो बदल नहीं प् रहा है उसे
किसी तरह से बदल के मै अपने जैसा हो जावूँ
कुछ कहना चाहता था , नहीं कह पाया
बात आई गयी हो गयी
टीस एक रह गयी मन में फिर भी
गुस्सा दबा रह गया मन में ही
इसी तरह इकठ्ठा की गयी चीज़ें
भारी कर देती है दिल मेरा
कभी कभी मन करता है निकल दूं सारा गुस्सा
सारा ज़हर जो रगों में दौड़ रहा है
और फिर से एक मासूम बच्चा बन जावूँ
फिर से नयी कलम से कुछ लिखू नया
फिर से इन आँखों से कुछ पुराना पढूं
और इसी तरह जो बदल नहीं प् रहा है उसे
किसी तरह से बदल के मै अपने जैसा हो जावूँ
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