रविवार, 17 अक्तूबर 2010

इत्तेफाक..

इत्तेफाक अच्छे लगते है

जैसे अचानक जब धूप से परेशान हो
और बादल छा जाए

एक ख़ामोशी की दीवार टूट जाए
किसी बहाने से

अरे रहने दो ना ,अच्छे लग रहे है
बिखरे हुए

मत छेड़ो इन्हें

कोई कह देता है
दिल में कई बातें आ जाती है

दिल भी अजीब है ना

मान जाता है कभी ,कभी जिद करता है
उसे क्या पता

इत्तेफाक रोज़ रोज़ थोड़े ना होते है
वो भी अच्छे वाले

पर जब भी होते है अच्छा लगता है
बहुत अच्छा

# शाहिद

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

आसमान ...

एक टूटे हुए पुल पे बैठा
मै देख रहा था

आसमान, नीला  आसमान

बहुत खूबसूरत दिखता है कभी कभी
अगर मेरी नज़र से देखो
तो और ज्यादा लगेगा

कभी कभी काला  दिखता है, बहुत काला
जब घने बादल छा जाते है

पहली बार देखने वाले को लगता है कि
ऐसा ही दिखता होगा आसमान

लेकिन वो तो हर दिन अलग दिखता है

कभी एक परदे कि तरह जिसपे सितारे टाके हो

कभी छलनी कि तरह जिसमे लाखों छेद हो
जिनमे से पानी टपक रहा हो

कई बार एक साए कि तरह लगता है
जो पीछा कर रहा हो हर जगह

हम सबको अपने हिस्से में मिलता है
हम सबका एक मुठ्ठी आसमान

जब कभी वक़्त मिलता है मै उस पुल पे जाता हूँ

देखने मेरा आसमान

# शाहिद

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

ऐसे ही...

१.
मुझे जिंदगी कि तलाश थी ,तुझे मुझ से था क्या वास्ता
मै ढूढता तुझे रहा , तू सामने से निकल गया
२.
वो शाम थोड़ी अजीब थी ,ये शाम भी कुछ कम नहीं
उस दिन तू मुझसे खफा सा था ,आज जिंदगी खफा सी है
३.
बड़े खुशनसीब है वो लोग भी ,तुझे देखते ,तुझे चाहते
मैंने छू के देखा था जब तुम्हे ,कुछ और ना फिर देखा किया

दुनिया...

कुछ हुआ भी नहीं
और ऐसा लगा की दुनिया बदल गयी

नया सा सब कुछ ,नए लोग
नए सपने ,नए वादे

ऐसा लगा कि नयी किताब खरीद
के पढ़ रहा हूँ कोई

नए पन्ने ,नए किरदार
नए लफ्ज़ और एक नया कलेवर

मेरे पहले भी किसी को ऐसा लगा होगा
मेरे बाद भी लगेगा शायद

पर घड़ी भर को ये मानने में क्या जाता है
कि मै एक नयी दुनिया में हूँ

नयी ना सही ,पुरानी मरम्मत कि गयी

# शाहिद

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

आवाजें ...

आवाज़ आती रहती है

अजीब अजीब सी आवाजें

चिड़ियों के चेहचेहाने  की
पानी के टप टप गिरने की
पंखे की टर टर की

रेडियो के गाने की
किसी को जोर से बुलाने की

आवाज़ आती रहती है

अजीब अजीब सी आवाजें

झींगुर के बोलने की
पत्तों के हिलने की
मुर्गों के बांगों की

किसी के रोने की
किसी को हँसाने की


आवाज़ आती रहती है

अजीब अजीब सी आवाजें
बाज़ दफा अच्छी लगती है झूटी बातें भी
दिल बहल जाता है कभी कभी उनसे भी

सुबह होते ही आँख खुलने का मकसद
समझ जाते जो हम पूरा तो रोते भी

पता है शौक़ रखना अच्छी बात है लेकिन
अगर ऐसा हुआ होता तो हम कुछ और होते भी

ग़लतफहमी ....

ख़िलाफ़त कर नहीं सकता, और तेरा हो नहीं सकता
दिल इतना बड़ा हो जिसका ,वो कमज़ोर हो नहीं सकता

 समझने की ज़रुरत है ,की क्या है फायदा इसमें
 खुदा की मर्ज़ी है इसमें ,तो बुरा हो नहीं सकता

दाग आँखों में हो तो साफ़ दिखता नहीं कभी
जो जैसा दिखता है ऐसे, वो वैसा हो नहीं सकता

"ग़ालिब" ना बन, ना उस जैसा होने का भरम रख
तू जितना जानता उसको ,वो उतना हो नहीं सकता

# शाहिद 

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

मेरे आगे ..

कुछ इस तरह वो पलकें ,झुका गया मेरे आगे
जैसे सूरज पे पर्दा पड़ गया सारा ,मेरे आगे

हकीकत से था बेपरवाह, दिल किसी और दुनिया में
जब जागा तो दिखी ,एक नयी दुनिया मेरे आगे

कई किरदार देखे थे मेरे पहले, सितमगर ने
जो देखा मुझको तो ,हार मान बैठा वो मेरे आगे
 
सितारों से भरी थी रात, ख्वाब कई थे आँखों में
सुबह हुई तो कहता था, क्या क्या हुआ मेरे आगे

बेचारा किस तरह करे सच और झूठ में फर्क
जो उसका सच है वो तो झूठ है अब मेरे आगे

जब सुननी नहीं है बात तो चाहे जो कुछ कह लो
मेरा दिल खुद की सुनता और करता है मेरे आगे

डर जिस बात का है वही है हिम्मत की ज़मीन
ये दिखता कुछ है होता कुछ है क्या लफड़ा मेरे आगे

# शाहिद

उसी रास्ते पर...

रास्ते में आते हुए
कुछ धान के खेत पड़ते है

रोज़ शाम को सूरज की तिरछी किरणे
उन पे ऐसे गिरती है मानो 

कोई रास्ता दिखा रहा हो उजाले का

एक छोटा बरसों पुराना पुल

झाड़ियों से ढाका हुआ

ऐसा लगता है की जाने कितने 
जाने वालों की कहानोयाँ छुपाये हुए

वहीँ खड़ा है

एक मज़ार जहाँ साल में एक बार
मेला लगता है

और बाकी वक़्त में उस में उगी घास
बकरियों को अंदर बुलाती है

पर लोहे का वो पुराना गेट

एक दीवार सा खड़ा हो जाता है उनके लिए

एक पीपल का पुराना पेड़
उस गंदे तालाब के पास

जो हर बरसात में साफ़ पानी से भर जाता है

हर आने जाने वालों को सुस्ताने को रोकता है

वहां हवा के बहने की आवाज़
पत्तों से होके गुज़रती जाती है

फिर कुछ घर दिखाई देने लगते है

बस्ती करीब मालूम होते ही
सूरज अँधेरे की चादर में छुप
जाता  है

और फिर कोई और चल निकलता है
उसी रास्ते पर

# शाहिद

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

एक बार ..........

एक बार बस एक बार
मुझसे झगड़ के चले जाओ

बुरा बन जाओ मेरे लिए

इतना की फिर कभी याद ना करूँ मै तुम्हे

वो धागा तोड़ दो जिस से जुड़ा हुआ हूँ मै तुमसे
वो रास्ते बंद कर दो जो तुम्हारी तरफ जाते हो

बन जाओ अनजान मेरे लिए

इतना की फिर कभी ना जान पाऊं तुम्हे 

एक बार बस एक बार
मुझसे बिछड़ के चले जाओ

  # शाहिद