मुझे नफरत है तुमसे
इस वजह से नहीं की तुम में
बुराइयाँ हैं बल्कि इस वजह
से की मै एक भी ढूंढ नहीं पाता तुम में
तुम क्यों चारों तरफ फैले रहते हो
कभी दीवार पे नज़र आते हो
कभी खिड़की के उस पार दिखाई देते हो
कभी जो चाँद देखूं तो उसमे भी दिखते हो
कभी मेरी मेज़ पे रखे सूखे फूल में नज़र आते हो
मै नफरत करता हूँ
क्योंकि तुम कभी दूर होते ही नहीं
पर ये पूरा सच तो नहीं
तुम तो बहुत दूर हो
इतना की वहां पहुचना
इस जनम में तो मुमकिन भी न हो शायद
1 टिप्पणी:
dhanyawad
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