मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

मुमकिन

मुझे नफरत है तुमसे 

इस वजह से नहीं की तुम में 
बुराइयाँ हैं बल्कि इस वजह 
से की मै एक भी ढूंढ नहीं पाता तुम में

तुम क्यों चारों तरफ फैले रहते हो

कभी दीवार पे नज़र आते हो
कभी खिड़की के उस पार दिखाई देते हो

कभी जो चाँद देखूं तो उसमे भी दिखते हो
कभी मेरी मेज़ पे रखे सूखे फूल में नज़र आते हो

मै नफरत करता हूँ 
क्योंकि तुम कभी दूर होते ही नहीं
पर ये पूरा सच तो नहीं 

तुम तो बहुत दूर हो

इतना की वहां पहुचना
इस जनम में तो मुमकिन भी न हो शायद