बरसात इस बार, बहुत मुश्किल गुजरी है;
ज़िन्दगी फिर ग़मों में शामिल गुजरी है.
तेरी याद ही आई है, जब भी बैठे हैं;
कुछ इसी हाल में हर महफ़िल गुजरी है.
तुझको जब भी देखा, घायल ही हुए है;
तेरी हर अदा मुझपे तो कातिल गुजरी है.
मैंने हर बार उसे अजनबी समझ छोड़ दिया;
मेरे सामने हर बार जब मंजिल गुजरी है.
तुम उस हालत को कभी ना समझ पाओगे;
तेरे जाने के बाद जो इस दिल गुजरी है.
-शाहिद