शनिवार, 31 मार्च 2012

कैसे कहें , किधर जाएँ,
की हम बताये क्या?


जो खुद को न समझ पाए,
तुम्हे समझाए क्या?

जो वादे कर के जाते हो
तो तोड़ते हो क्यों?

फिर ये भी कहते हो,
कि रिश्ता निभाए क्यों?




ये मानते है हम
कि यकीन कर न पाओगे,


पर ये भी मत कहो,
कि हम आजमाए क्यों?





गुरुवार, 29 मार्च 2012

जंजाल

किसी तरह
ये जहाँ छूट जाए


दूर हो जाऊं 
उन सबसे 


उनकी परेशानियाँ
कम करना चाहता हूँ,

मेरा होना परेशान
करता है उन्हें,


मेरी बातें तकलीफ
पहुँचाती है

मेरे साए उनके लिए
मुफीद नहीं,


मेरी परछाई
बदशगुन की तरह है
उनके लिए,

उनका हर
ग़म दूर करना चाहता हूँ,

मेरी फ़िक्र में जो रातें
काटी है उन्होंने

उसकी किश्तें किस तरह चुकाऊं


जो शामें मेरे इंतज़ार में गुजारी हैं
उनका मोल कैसे बताऊँ,


जो सुबह मेरे खातिर
बर्बाद   हुई उनका हिसाब कैसे
दूँगा,

कुछ करना चाहता हूँ,
पर सोच के रह जाता हूँ,

कुछ ऐसा हो की
रास्ते ख़तम हो जाएँ,


ज़िन्दगी एक अंधे मोड़
पे पहुच जाएँ,

शायद तब मै वापसी का
 रास्ता अख्तियार करूँ,

पर उस से पहले
इस जंजाल से निकलना चाहता हूँ,


...............







शनिवार, 24 मार्च 2012

पीला रंग

पीले कपड़े में
बीमार दिख रही थी तुम,


जैसे कुछ खाए
जा रहा हो अन्दर ही अन्दर,

जो फीकी मुस्कान
है चेहरे पर,


वो नहीं छुपा पाता


उस खालीपन का एहसास

जो कहीं घर कर गया है
तुम्हारे अन्दर,

पीला रंग न पहना करो,

लोग कहते है
पीलिया हो जाता है,

पता नहीं लोग सच कहते है,  या ?


बोलो..!

रात बहुत बेचैन रहती है.
रात बहुत सुनसान रहती है,

रात अधूरी रहती है
तुम्हारे बिना,


अँधेरा नही छटता,

सुबह नहीं होती

कभी  नहीं होती ,

सिर्फ एक रौशनी का एहसास
जगा देता है,

कोई ताजगी नहीं,

जैसे ज़हन पे
घास उग आई हो,

लम्बे वक़्त से
सीलन का एहसास ,

जो किसी धूप से,
किसी गर्माहट से

ख़तम नहीं होगी,


वक़्त यूँही तो नहीं रहेगा हमेशा?


बोलो..!


गुरुवार, 22 मार्च 2012

नया घर

बहुत रात हो जाती है,

जागते जागते
जागने की आदत पड़ गयी है शायद,


ख्वाब अधूरे पड़े
कैनवास पे ही रह जाते है,

रंग नहीं मिलते,

जिस दिन मिलते हैं,
उस दिन रंगने का वक़्त नहीं मिलता,


यादों के पौधे
मुरझा जाते हैं,

पानी नहीं मिलता,

जिस दिन मिलता है,
उस दिन बाढ़ आ जाती है,

पौधे डूब जाते हैं,

उम्मीदों के शीशे चटक जाते है,

बहुत गर्मी है
आज कल के वक़्त की हकीकत में,

नया घर ढूंढ रहा हूँ,


अपने लिए,


जहाँ कोई उम्मीद नहीं होगी,
और कोई याद भी नहीं,

और कोई ख्वाब भी नहीं होंगे,

रेगिस्तान के बीच की
एक सुनसान जगह...

सवाल

हर चीज़
जो ग़लत हो रही है ,

उसका ज़िम्मेदार
मै ही तो नहीं,

और लोग भी तो हैं,


उन्हें कोई कुछ क्यों नहीं कहता?

क्या जवाब देता उसे,

अब वो बड़ा
जो हो गया है,

सवाल कर सकता है,



....

दबा दबा सा

कहीं एक एहसास
ही तो था,

कल जो
सामने दिखा तो
बाहर आ गया,

मुझसे डरता है,

जाने किस बात से,

मै उसे कुछ नहीं
कहूँगा

पर उसे फिर भी
डर लगता है,

मुझसे ,
या मेरी परछाई से

कल हिम्मत जुटा कर बोल पड़ा,

आप बहुत बदल गए हैं/


सच ही तो है...

गुरुवार, 15 मार्च 2012

अफ़सोस

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,

उन बातों का जो हो रहे हैं अभी,
और उन बातों पर जो हो चुकी हैं,

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,

उन पर भी जो कभी हुई ही  नहीं,
और उन पर भी जो शायद हो सकती थी,

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,

उन बातों पर जिन्हें होने से
रोक दिया मैंने


और उन बातों पर भी जो नहीं रोक पाया
होने से


अफ़सोस जताना चाहता हूँ,


उन बातों पर
जिनपे मेरा कोई बस नहीं चलता,

और उन बातों पर भी जो मेरे बस में
होकर भी नहीं होती...


अफ़सोस जताना चाहता हूँ,  


उन बातों पर जो भुलाए नहीं भूलती,


और उन बातों पर भी जिन्हें मामूली समझ कर
या वक़्त की कमी से दरकिनार कर देता हूँ,..


अफ़सोस जताना चाहता हूँ, 


उन बातों पर जिनसे मेरा रिश्ता है,

और उन बातों पर भी जिनसे सबका
वास्ता है..

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,
हर उस बात पे जिसके लिए

मै सोच पाता हूँ,

और कुछ नहीं कर पाता...


......

गुरुवार, 8 मार्च 2012

बुधवार, 7 मार्च 2012

धीमे धीमे...

एक ही तरह की
बातें करता हूँ हर रोज़,

हर रोज़ वही किस्सा सुनाता हूँ,


एक ही सवाल करता हूँ खुद से,


एक तरह की नज्में लिखता हूँ,


मेरे उन्वाँ नहीं बदलते कभी,


बदलते दौर में बीती बातों पे रोना,


ये बदलते वक़्त के साथ 
अच्छा रिश्ता 
तो नहीं निभा रहा हूँ मै,


मुझे भी
वक़्त के साथ बदलना चाहिए,

कच्चे ही सही
नए रास्तों पे चलना चाहिए,

नए ख्वाब देखना
शुरू करूं कैसे,

नदी की बहती धार के साथ
बहूं कैसे,


मै अचानक नहीं बदल सकता,


और धीमे धीमे कुछ करने की आदत
बहुत गहरा असर छोडती है...



......

मुझे इन आइनों से आज़ाद करो,
हर जगह तुम ही दिखते हो मुझे,


ग़ज़ल,

बादलों में छुप जाता कहीं ,
कोई किस्सा कभी तो पुराना होता...


जो कभी सुन ली होती ज़माने की हमने,
मेरे पीछे भी तो ज़माना होता..


दिल के दरवाजे से जो न लौट आता,
तो मै भी एक दीवाना होता..


कुछ रास्तों ने मुझे गुमराह किया,
वरना मै भी एक इंसान सयाना होता..


तुम्हारे लबों ने जो छू लिया होता,
वो नज़्म भी एक तराना होता..



...

आदतों को छोड़ना जो आसान होता,
दिल फिर इतना क्यों परेशां होता..


जो आँधियों ने उड़ा दिए होते सबूत उसके,
चमन के उजड़ने का कहाँ कोई निशाँ होता...

पहली बार में ही जो टूट गया होता,
ख्वाब वो फिर क्यों जवाँ होता..


मंगलवार, 6 मार्च 2012

आसानी ....

तुम आसमान पे रहते हो ,
मै ज़मीन पे दिखता हूँ,


इतना आसान नहीं दूरियों
को मिटा पाना....

मेरी बातों से परेशान होना,
मेरे दिखने से हैरान होना,

जो साथ मुश्किल लगे मेरा,
तो फिर चले जाना...

लोग पूछेंगे तुमसे,
जवाब मत देना,


जो चाहेंगे तुमसे लेना,
वो बात मत देना,


जब रास्ता आसान हो जाए,
तो मुझे भुला देना,


तुम खिलते रहना,
मौसम बदलते रहेंगे,


दोस्त बनाते रहना,
लोग मिलते रहेंगे,


जब याद आये कभी मेरी,
तो बस बतला देना,..


तुम तारों के साथ रहते हो,
मै सहरा न छोड़ना चाहूं,



इतना आसान नहीं दूरियों
को मिटा पाना...






सोमवार, 5 मार्च 2012

ग़ज़ल,

बहुत आसान लफ़्ज़ों में जवाब दिया उसने,
यहाँ के पानी में कोई गुलाब नहीं खिलता...

जिसे तुम ढूँढने आये हो मीलों चलकर,
वैसा कोई जवाब यहाँ नहीं मिलता..

अपने ख़्वाबों को अपने पास समेट कर रखो,
टूटे ख़्वाबों का कोई हिसाब यहाँ नहीं मिलता...

यूँ तो मिल जाता है बिन मांगे बहुत,
पर मांगने से यहाँ कोई अज़ाब नहीं मिलता..


..

दुनिया को, ज़माने को तेरी फिक्र कहाँ,
गर फायदा न हो तो तेरा ज़िक्र कहाँ,


Wish...!

मै ज्यादा तो नहीं माँगता,

बस इतना हो कि

घड़ी भर को मेरी याद
तुम्हारे पास आये,

कभी नींद में एक ख्वाब में
देख लो मुझको,


मेरी तस्वीर किसी पुरानी एल्बम 
में दिख जाए तुमको,


मेरी कोई बात याद आये तुमको,


किसी जगह मेरी आहट
सुनाई दे तुमको,


किसी किस्से के दरमियान में 
मै भी आऊं,


मै ज्यादा तो नहीं माँगता,

बस इतना हो कि

एक धागा कहीं से जुड़ा रहे तुमसे...!

...

दोनों में कोई अपनी आदतें नहीं बदलेगा,
तुम भुलाते रहना , हम याद करेंगे...

तुम खयालो को ग़ुलाम बनाते रहना,
हम आहटों को आज़ाद करेंगे..



....

मुड़ के पीछे अगर देख लिया होता,
वक़्त ने कुछ इंतज़ार कर लिया होता.

जो मैंने दिल की बात सुन ली होती,
तो शायद खुद पे ऐतबार कर लिया होता..

 

शनिवार, 3 मार्च 2012

ग़ज़ल,

दर्द दिल से मेरे निकलता भी नहीं,
दिल भी ज़ालिम है कि संभलता भी नहीं ..

न जाने कितने खुर्शीद हुए गुरूब यहाँ,
एक वो आफताब है कि ढलता भी नहीं,,

जल गया दिल का मेरे हर कोना मगर,
जहाँ तुम थे वो कोना , जलता भी नहीं..

एक काँटा सा चुभ गया था उस दिन,
मेरे सीने से लिपटा है ,निकलता भी नहीं...

तेरे इंतज़ार में खुली रखी है आँखें हमने,
छोट जाने के दर से , मै आँख मसलता भी नहीं..