लफ़्ज़ों को बंधना नहीं पसंद है
शायद,
ग़ज़लों में जब उन्हें बांधना
चाहता हूँ,
तो वो धोखा दे दते हैं,
पानी की तरह नहीं बहते
बर्फ की तरह अकड़ जाते है,
मुझे नज्में पसंद हैं
जिनका कोई
पक्का रास्ता नहीं होता ,
वो तो बस बहती रहती हैं
जिधर भी पानी
का बहाव उन्हें
ले जाता है।
वो उन संकरी गलियों से
होकर भी गुज़र जाती हैं,
जहाँ ग़ज़ल की बहर
नहीं जा पाती,
ग़ज़लें एक निचोड़ लगती है,
जैसे उम्र भर
की थकान
मिटा रही हों
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