रविवार, 22 अप्रैल 2012

शहर

मुस्कुराहटों का शहर,
भीगी चाहतों का शहर,

उलझे ख्वाबों का शहर,

समेट लेता है,

उतार देता है ज़मीन पर,
और कभी आसमान पे चढ़ा देता है...

तोड़ देता है अन्दर तक,

बारिश में फिर न जाने कैसे
कुछ जान भर देता है,

छोड़ने नहीं देता,

चमक दमक ,
रौशनी भरी हुई चारों तरफ,

भुला देता है,
बहुत कुछ,

फिर याद दिलाता है
पुराना शहर,

झूठा कर देता है पुराने ख़्वाबों को,
नए ख्वाब सच कर देता है,

बहकाता है,

उड़ने का आसमान देता है,
पांव तले की ज़मीन खिसका देता है,

ढेरो करतब दिखता है
ये अजीब शहर......
 
    

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

मेरी दुनिया

मेरे दिल के अँधेरे कोने


अनजाने डर से भरे हुए,


वो दुनिया जो नहीं दिखाना
चाहती हूँ मै,

किसी और को,


ख़ास तौर से उनको,
जिन्हें मतलब नहीं,


जो नहीं समझ सकते 
मेरी उलझनों को,


छोटे छोटे फैसले,
छोटी छोटी मुश्किलें,


मै खुद हल कर सकती हूँ,


किसी के दखल की 
ज़रुरत नहीं समझती,


वो करना मुझे सही लगता है,


इसलिए नहीं कि वो सही है,


बल्कि इसलिए कि

मै वो करना
चाहती हूँ,

मुझे मेरी आज़ादी पसंद है,
मेरी दुनिया,

मेरी अपनी दुनिया
मेरी शर्तों पर

मेरे लिए....

गर्मियों की पहली रात

गर्मियों की पहली रात


माथे पर पसीने की कुछ बूँदें,


अलसाई रात 
वो पिछले साल वाली आज याद 
आई,

साँसे तेज़ चलना

और सुबह की ठंडी हवा का
इंतज़ार

सिर्फ उसी वक़्त
कुछ चैन मिलता है,


बिजली का गुल होना,


अक्सर मोमबत्ती के
साथ बैठ के,

परछाइयाँ पकड़ने का वो खेल
आज याद आया,

कितना बदल गया है वक़्त
पिछली गर्मी से इस गर्मी तक,


कुछ बाल और सफ़ेद हो गए हैं,


चेहरे की झुर्रियां
भी कुछ बढ़ गयी हैं,

पिछले साल की वो धूल
भरी आंधी में
उस पेड़ का गिरना भी आज याद आया,

मेरे वजूद का
एक सिरा जिस आग में जल
गया था पिछले 
साल,


कल रात उसका दूसरा सिरा
भी खोया,


तो वो याद आया...


सोमवार, 2 अप्रैल 2012

...

क्या हुआ? कि दिल उदास है आज,
क्या हुआ? जो नहीं हुआ पहले...


ग़ज़ल,

हौसले छोड़ के जाना चाहें,
हम भी साहिल को भुलाना चाहें..

अपनों से अब कोई उम्मीद तो नहीं,
हाँ, अपना सा कोई हम बेगाना चाहें..

 ज़िन्दगी बहुत मुश्किल हुयी है यहाँ,
 कहीं नया सा आशियाना चाहें..

परिंदा भटका है बहुत वक़्त से,
अब वो भी कुछ आब-ओ-दाना चाहे..