बुधवार, 30 जुलाई 2014

ग़ज़ल,

तुम भी कह लो तुम्हें जो कहना है
हम भी सुन लें और चुप हो जाएँ

ज़िंदगी है , तो उलझनें भी होंगी
क्या करें अगर न खो जाएँ

किसी के हिस्से तो आना है मुझको
नहीं अपने तो तेरे हो जाएँ

रात इतना तो करम कर मुझ पर
ख्वाब आएं न आएं हम सो जाएँ


रविवार, 20 जुलाई 2014

ग़ज़ल,

इक दफे चांद मुस्कुरायेगा , 
इक दफे तुम भी मुस्कुरा देना।

फिर से इस बार घनी उदासी में, 
तुम उम्मीदों के गीत गा देना।

ख्वाब चाहें हो न हों पूरे ,
उनकी तस्वीर तुम बना देना।

लोग तो दर्द बाँटते रहेंगे ,
तुम उस दर्द की दवा देना।

खो के उम्मीद जो बैठे है उनको
तुमपे लाज़िम है सहारा देना।