राह चलते कौन आपको पहचानता है
ये भी बता देता है बहुत कुछ,
वो कोने का सब्ज़ी वाला या जूस वाला
जो आपको भैया कह के आवाज़ लगाता है,
और एक छोटी सी झिड़की कि
"छुट्टे ले के आने हैं तुझे"
इतना सुनकर ही दौड़ पड़ता है,
दो छोटे बच्चे पहचान लेते हैं आपको
वो जिनका बचपन छिन गया है उनसे
और खिलाने चल पड़ते हैं आप
बेगाने शहर में जहाँ मुठ्ठी भर यक़ीन
भी बहुत मुश्किल से मिलता है,
वहाँ थोड़ा ज़्यादा दिल को खुश
कर देता है।
इंसानियत कैसे ढूंढें खुद के अंदर
वो भी तब जब दूसरों में उसके न होने
का रोना रोते हैं हर रोज़,
ये सवाल परेशान तो करता था
पर जवाब कुछ आज मिला
थोड़ा सा,
कि "दीद की ख्वाहिश है तो नज़र पैदा कर"
ये भी बता देता है बहुत कुछ,
वो कोने का सब्ज़ी वाला या जूस वाला
जो आपको भैया कह के आवाज़ लगाता है,
और एक छोटी सी झिड़की कि
"छुट्टे ले के आने हैं तुझे"
इतना सुनकर ही दौड़ पड़ता है,
दो छोटे बच्चे पहचान लेते हैं आपको
वो जिनका बचपन छिन गया है उनसे
और खिलाने चल पड़ते हैं आप
बेगाने शहर में जहाँ मुठ्ठी भर यक़ीन
भी बहुत मुश्किल से मिलता है,
वहाँ थोड़ा ज़्यादा दिल को खुश
कर देता है।
इंसानियत कैसे ढूंढें खुद के अंदर
वो भी तब जब दूसरों में उसके न होने
का रोना रोते हैं हर रोज़,
ये सवाल परेशान तो करता था
पर जवाब कुछ आज मिला
थोड़ा सा,
कि "दीद की ख्वाहिश है तो नज़र पैदा कर"