रविवार, 26 अक्तूबर 2014

दरिया

तुमने देखा है कभी
अपनी आँखों में ग़ौर से

वो जो दरिया बहता है,

यूँ  तो हर रोज़ बहता
रहता है ,

कभी मध्धम मध्धम
और कभी उमड़ने को बेचैन,

पर उस दिन क़ैद हो गया
वो तस्वीर में ,

दिए की रौशनी की परछाई
नज़र आई दरिया में,

और ठहरा हुआ सा दरिया

गुलाब के फूल की पंखुड़ियों की तरह
गुलाबी हो गया,

मानो शरमा गया हो,

दरिया की मछलियाँ
ये देख के इतरा गयीं,

और दरिया ने अपना रुख
बदल दिया जैसे,

और बहने लगा उस ओर
जिधर सेहरा सी वीरानी थी ,

और उस बंजर में भी फूल
खिलने लगे फिर से।  

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

ग़ज़ल,

इक दिया दिल में जला लो यारों 
फिर चाहे आग लगा लो यारो। 

रौशनी है तो अँधेरा न होगा,
उसको अपने पास बुला लो यारों। 

मुस्कुराहटों से लगे है चोट दिल में ,
थोड़ी सा और रुला लो यारों। 

हार और जीत  है तुम्हारा मसला,
जीतकर मुझको हरा लो यारों। 

कहीं हो दाग़ जिस्म पर तो छूट जाएगा,
दिल पे कुछ दाग लगा दो यारों। 

यूँ तो क़िस्मत ने कई बार आज़माया हमको 
तुम  भी एक बार आज़माअो यारों।  


मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

ज़िंदगी

ज़िंदगी वहाँ नहीं है
जहाँ अँधेरे कोनों में बैठे
ढूंढ रहे हैं आप

ज़िंदगी तो खुले आसमान के नीचे
गुनगुनी धूप में है,

ज़िंदगी मेज़ पर बैठकर ली गयी
चाय की चुस्कियों में है,

ज़िंदगी उदास चेहरों से दूर
कहीं से आती मीठी हँसी में है,

सो ज़िंदगी को वहाँ क्योँ ढूँढे
जो उसका पता ही नहीं,

क्यों ना आज से ढूढ़ने का लहज़ा
बदले ,

चलें उस ओर
जहाँ नहीं देखा पहले,

किसी की मुस्कराहट की वजह बन जाएँ।

और फिर अपने आप
लौट आएगी वो ज़िंदगी

जिसकी तलाश है ,

यही चाहते हैं न आप ?

फिर न कहियेगा  किसी
ने बताया नहीं।


गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

सवाल-जवाब

वो शिकायत करते हैं ,
बदलते वक़्त की
बदलते चेहरों की
बदलते मौसम की ,

क्यों इतनी जल्दी बदल
जाते हैं लोग?

इस सवाल का क्या जवाब होगा?

सोचता हूँ कि वो जवाब दूँ
जो सच है।

पर क्या वो सच सुनना चाहते हैं ?

नहीं।

उन्हें जवाब चाहिए ,
वो भी वो जो उन्हें पसंद आये।

जवाब जो उन्ही पहले से मालूम है।
जवाब जो तसल्ली दे।

मै भी जवाब देता हूँ,
कि अब जवाब मेरी तरफ नहीं आते।

मुझे देख किनारे से मुड़ जाते हैं।

पर मेरे पास जो जवाब हैं
वो हैं भी या नहीं
ये पता नहीं।

पर लगता है,
वक़्त जो बदल रहा है
वो इसलिए
कि  आप उसे खड़े होकर देख रहे हैं।

लोग बदल गए से लगते हैं
क्योंकि वो बढ़ गए हैं
मील के किसी और पत्थर पर ,

रास्ते की धूल मिट्टी ने बदल दिया है
दिल भी और चेहरा भी।

और मौसम का क्या है,
वो तो बदलते ही रहते हैं।