गुरुवार, 8 नवंबर 2018

कोई सुरूर

मेरी सुबह हो तुम
मेरी शाम हो
जिसे पुकारता हूँ घड़ी घड़ी
उस उल्फत का तुम नाम हो

तुम दीन मेरा
ईमान हो
तुम जान हो
अरमान हो

तुमसे दूर रहने में कुछ नहीं

तुम ख्वाब हो
तुम रात हो
तुम बेसबब कोई बात हो

जिसे भूल भी कभी ना सकूं
तुम वो हसीन मुलाक़ात हो

मेरे दिल का तुम जज़्बात हो
सेहरा में तुम बरसात हो

मेरी आँखों का तुम नूर हो
जन्नत की कोई तुम हूर हो
कुछ और दिल में हो न हो
मेरे दिल में तुम तो ज़रूर हो

खुदा ने मुझको था पिला दिया
तुम उसी का कोई सुरूर हो

तुम्हे चाहना ही है चाहता
दिल कुछ और तो नही चाहता

तुम्हे देखना हो कभी कभी
हो कभी कभी कुछ हिमाकतें
थोड़ी लर्जिशें थोड़ी शोखियाँ
तेरे दिल में भी बची रहें

मेरे दिल में जलती जो आग है
थोड़ी तेरे दिल में बची रहे

गुबार

सुबह से शाम की भाग दौड़
और लोगों की तमाम शिकायतें
इस उम्मीद पे खरा उतरना की
आप कुछ ठीक कर सकते हैं

तमाम तरह की ज़ोर आज़माइश

ख़ुशी इस बात की
कि लोगों को कम से कम
आपसे उम्मीद तो है

क्या हुआ जो आप ज़्यादा
कुछ नहीं कर पाते
आप सुन सकते दुःख और तक़लीफ़
सुनने से हल्के हो जाते हैं लोग
और आप भर जाते हैं

आपको भी चाहिए वक़्त
खाली होने के लिए
सुनाने के लिए

इसलिए कुऐं के पास
जाके चीख लीजिये
हल्का हो लीजिये

पर ध्यान से
कोई सुन न ले
क्या कुआँ भी भर जाएगा
गुबार से ?
शायद

प्यार

जब दरिया में पानी कम हो जाता है
तो लहरें भी कम उठती हैं

और पानी में फेंका हुआ पत्थर
किनारे पर नही आता 
वही बीच दरिया में डूब जाता है

प्यार भी ऐसा ही होता है शायद

दर्द

दर्द ज़्यादा तो नहीं है
थोड़ा है
एक मुठठी

और कतरा कतरा 
रिस रहा है

कम हो रहा है
कि नहीं
ये पता नहीं

उलझन भी है थोड़ी सी
सर पे पाँव के बल
चल रही है
उतरना नहीं चाहती

तो क्यों न
दोनों के साथ ही चला जाए

अकेले चलने से तो अच्छा ही रहेगा |

यकीन

ढेर सारी बातें हैं कहने को
पर कभी लगता है कि
सब गैर ज़रूरी हैं जैसे

समझ नही आता 
दोस्ती के कौन से दायरे में
रहना ज़्यादा ज़रूरी है?

वो कि जिसमे
सारी उलझने साझा
कर ली जाएँ

या कि वो जिसमे
बस अच्छी बातें हो
बिना किसी ड्रामा के

मुश्किल होता होगा तुम्हारे
लिए भी
है न ?
सबसे मुश्किल है
अनकहे का बोझ उठाना
और उसपे ये उम्मीद
कि जो नही कहा
वो दूसरों को पता चल जाए

दरअसल हम बात कम
पहेलियाँ ज़्यादा बुझाते है
सीधी बातें तक़लीफदेह
होती हैं शायद

याद करना भी एक अलग मुश्किल है
उसमे भी ये लगना की शायद
इसका कोई मतलब नहीँ
कभी कभी ये भी लगता है
की कोई फ़र्क़ नही पड़ता होगा

दुसरे पल ये बात भी झूठी मालूम
होती है
उस पर ये वक़्त
जो हमेशा कम पड़ जाता है

जी करता है
थोडा ज़्यादा वक़्त मांग लेते
तुम्हारे लिए
खुद के लिए

पर अधूरा वक़्त ही तो सच्चाई
के ज़्यादा क़रीब है
शायद तुम सब समझती हो
काश मुझे भी यकीन हो जाए

नया साँचा

और तुम भी उन जैसे हो
उनमे और तुम में कोई फ़र्क़ नहीं
लोग तुम्हें भी झूठा समझते हैं

तुम जो देखते हो खुद को
वो दूसरों को नज़र नहीं आता

दुसरे तुम्हारी बातों पे गौर करते हैं
मतलब निकालते हैं
और बाकी दुनिया की तरह
समझ लेते हैं तुमको भी

जो दिल के कोने हैं
वहाँ रौशनी नहीं जाती
इसलिए देख नही पाता कोई

आसान होता है
बने बनाये सांचों में लोगों को डालना
कोई नया साँचा नहीं बनाता
तुम्हारी माप का

इसलिए बातों को तौल के बोलो
वरना लोग पहले तुम्हारी बातों से नफरत करेंगे
फिर तुमसे करेंगे

और यकीन नही दिला पाओगे उन्हें
कि जो वो देख रहे हैं
वो पूरी तस्वीर नहीं है

अचानक

दिल को कुछ नया हुआ सा है
जैसे किसी पौधे की 
नई शाख उग आई हो,

अचानक से होती चीज़ें
नज़र तब आती हैं 
जब आप पीछे देखते हैं

वक़्त अजीब शै है
जो उजाड़ने और बसाने का काम
बिना रुके करता रहता है,

हमेशा बुझा सा रहने वाला
अगर दरिया के पास चला जाए
तो प्यास नहीं रहती,

मौसम जो कभी सूखा सा हो
बदलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगाता,

और फिर वही वक़्त 
अचानक से बदल भी देता है
अच्छे मौसम को बुरे मौसम में भी

आखिरी सफ़र

ज़िन्दगी तुम्हारे साथ ऐसे ही गुज़रनी चाहिए
जैसे स्टेशन पे बैठे हम दोनों
एक दुसरे की बातों में डूबे हुए
आखिरी सफ़र तक साथ चलते रहें

दुनिया की सीट का एक कोना
हमारा हो,
जहाँ तुम बैठ सको पाँव ऊपर करके,
और हम देखते रहें बदलते मौसमों को

और एक डस्टबिन हो पास में
जहाँ अपनी सारी परेशानियां हम डंप कर सकें
प्यास लगे तो हो पानी का चश्मा
वहीँ कहीं
जिसके सहारे थकान दिन की तुम मिटा पाओ

हो इंतज़ार किसी बात का तो बस थोड़ा हो
पहुचना हो कहीं तो पुल तो वक़्त बना देगा
हमको इस पार से उस पार भी करा देगा

तुम भी पूछ लेना किसी से की क्या रास्ता है वही
यूँ न हो दौड़ मंज़िल की लगानी पड़े हमको
और तुम कहीं फिर पीछे मेरे रह जाओ
मैं फिर वापस आकर साथ तुमको ले जाऊँगा

यूँ न हो तुम तो सफ़र पर निकल पड़ो तनहा
हम फिर बाहर से इशारे करें तुमको
तुम न देख पाओ मेरे हिलते हुए हाथों को

लौटना ना पड़े हमको अकेले घर की तरफ
फिर उन्हीं रास्तों से जिन पर हम हों साथ चलें
ज़िन्दगी हो तो साथ तुम्हारे
वरना फिर कैसे
ज़िन्दगी कैसे गुज़रेगी सूनी रातों सी

ग़ज़ल,

कौन सा दिया, जला रहे हो तुम,
क्यों रोशनी को ला रहे हो तुम ।

कौन होते हो तुम, ये सब पूछें,
क्यों ये बातें बना रहे हो तुम ।

आग का बैर, तो है पानी से,
क्यों ये पौधे जला रहे हो तुम ।

लोग तुमसे हुए हैं, सब रूठे,
क्यों फिर मुस्कुरा रहे हो तुम ।

शोर बरपा है, चीख फैली है,
क्यों ये मातम मना रहे हो तुम ।

सबसे झगड़ा है, प्यार है किस से,
क्यों चोट दिल पे खा रहे हो तुम ।

कौन सा ख्वाब पड़ गया है पीछे,
क्यों ये आँखे सुजा रहे हो तुम ।

किनारा

और मैं देख रहा था
किनारा
उस तरफ की दुनिया
धुँधली सी
हल्की रोशनी सूरज की
एक टूटी डाल नदी के बीच
चिड़ियों का एक झुंड
पानी पीता हुआ

हरे पौधे
खिले हुए फूल
चमकते चेहरे
जन्नत को याद करते हुए इंसान
रहमत को याद करते हुए इंसान
और मैं इस किनारे बैठा
देख रहा था
दुनिया का आखिरी सिरा

लाल सुर्ख सूरज
कड़ी धूप
भूख से बिलबिलाते कुत्ते के पिल्ले
भगवान को याद करते इंसान
इंसान को याद करते इंसान
शैतान को याद करते इंसान

मैं देख रहा था
बेबस और लाचार
खुदा भी देख रह था
बेबस और लाचार ?

परेशान आदमी

खुद भी परेशान होता है
दूसरों को भी परेशान करता है
एक परेशान आदमी,

आईना तलाश करता है
दूसरों को दिखाने के लिए
आईना तलाश करता है
खुद को देखने के लिए

मुश्किलों से जब लड़ता है
एक परेशान आदमी,
किनारा ढूँढता है 
मझधार में फँसा
रोशनी ढूँढता है
अँधेरे से घिरा
जब आरज़ू दम तोड़ देती है
उम्मीद ढूँढता है
एक परेशान आदमी ।

कोशिशे करता है,
ज़िन्दगी से लड़ता है
जो बन पड़े वो सब करता है,

लोगों की सुनता है,
हाथ भी फैलाता है,
जब कोई मदद नहीं आती,
तो अन्दर से टूट जाता है,

फिर हार कर खुदा को
याद करता है
एक परेशान आदमी ।

झूठ-सच

झूठ पहले भी बोला जाता था,
झूठ अब भी बोला जाता है,
झूठ पर लोग पहले भी भरोसा करते थे,
झूठ पर लोग अब भी भरोसा करते हैं,
सच कहने वालों को
पहले भी सूली पर चढ़ाया जाता था,
सच कहने वालों को
अब भी सूली पर चढ़ाया जाता है,
गैलिलियों ने सच कहा तो उसे मार दिया गया,

उस समय के उनके विरोधियों के बारे में
अब हम नहीं पढ़ते हैं,
अब हम
गैलिलियो के बारे में पढ़ते हैं।

क्योंकि अब हम देख सकते हैं वो
जो गैलिलियो ने अपने टेलीस्कोप से देखा था ।

वो जाहिल लोग जो उस समय थे,
वैसे ही जाहिल लोग अब भी हैं,
जाहिलियत से बड़ा कोई गुनाह नहीं,
जाहिलों को याद नहीं रखा जाता,
उनकी मिसाल नहीं दी जाती,
एेसे लोग उसी पेड़ को काटते हैं,
जिस पर वो बैठे होते हैं,

अगर कालिदास को तब ना टोका गया होता,
जब वो डाल काट रहे थे,
तब वो कालिदास नहीं बनते,
कालिदास बने,
क्योंकि किसी ने उन्हें बताया
कि अगर पेड़ की डाल काटोगे
तो नीचे गिर पड़ोगे,

इसलिए आईना दिखाने वालों की जरूरत
हर दौर में होती है,
अँधेरे दौर में ज्यादा होती है,

बरतोल्त बेख्त ने कहा था,
"क्या अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे,
हाँ, अँधेरे वक्त के गीत गाये जायेंगे,"
इसलिए सच को ढूँढिए,
हो सकता है आप भी मार दिये जायेंगे,

लेकिन अगर आपने सच को ढूँढा है,
तो आप जियेंगे,
अपने सच के साथ ।

एक कुत्ता

आज एक कुत्ता
एक बच्चे को खा गया,
कुत्ते के मालिक ने कुत्ते
को मार दिया ।
कुत्ते के मालिक ने फिर खुद को मार दिया।

गलती की सज़ा मिल गयी,
तीन जाने चली गयी।

लोग बच्चों से प्यार करते हैं,
लोग कुत्तों से प्यार करते हैं,
दोनों को ही प्यार से
माई बेबी, माई बेबी कहते हैं ।
मुझे कुत्तों से डर लगता है,
अब इस घटना के बाद ज़्यादा लगेगा ।

लोग कुत्ते क्यों पालते हैं?
कहते हैं कि वफादार होते हैं ।
होते होंगे वफादार,
पर खतरनाक होते हैं,
इंसान भी तो खतरनाक होते हैं ।
होते होंगे खतरनाक,
पर इंसान ही पालने चाहिए,
चाहें वो आस्तीन के सांप ही क्यों न निकलें ।

झूठ का एक पुलिंदा

झूठ का एक पुलिंदा हो
तुम,
बांट रहे हो झूठ
सबको बराबर बराबर,
लोग खर्च कर रहे हैं
अपना समय और ऊर्जा,
तुम पर,
तुम्हारी झूठी बातों पर,

जब एक पुराना हो जाता है,
तुम नया गढ़ लेते हो,
लोग तुम्हारे झूठ पर
इतना यकीन करते हैं,
जितना वो ऊपर वाले पर
भी ना करते हों।

अच्छा चल रहा है ,
झूठ का कारोबार,
नफरत का कारोबार,
अगले साल जब
फसल उगेगी,
तो लोग झूठ काटेंगे,
उनके बच्चे पलेंगे,
तुम्हारे बोये झूठों पर,

तब तक
जब तक कि एक सच कहने वाला
नहीं आता,

तब तक
जब सच को सच
मानने वाले नहीं आते ।

तुम्हारा झूठ
और उसका सच
मिलेंगे इक दिन,
तब तक भले देर हो जाये ।

काँच के सिक्के

कुछ पहेलियाँ हैं
काँच के सिक्कों की तरह,
जिनके आर पार दिखता है,
पर मोल समझ नहीं आया।

किसी नये तुगलक ने
चलाये हैं काँच के सिक्के,
कहता है कि
रूपया काला हो गया है।

कुछ दोहे हैं,
गाय के गोबर की तरह,
जहाँ गिरते हैं
वहीं रह जाते हैं ।

लिखे तो गये थे
कि पढ़े जायें
लेकिन
सूखने पर जलाने के काम आते हैं ।

कुछ लोग हैं
जानवरों की तरह,
जो इंसान तो नज़र आते हैं,
पर इंसानी पहचान से महरूम,
नये वक्त में इनकी बहुत माँग है,

काँच के सिक्कों की,
गोबर से दोहों की,
और इंसानी जानवरों की।

तुम्हारी बातें

तुम्हारी बातें
दो खामोशियों के बीच
का एक अंतराल हैं।

उन खामोशियों में यूँ तो हर 
कुछ होता है,
एहसास तुम्हारे,
यादें तुम्हारी,
तुम्हारी खुशबू,
पर जो नहीं होती
वो है आवाज़,

मीठी मधुर,
प्यारी प्यारी,
घी में घुली शक्कर
जितनी मखमली,
तुम्हारी बातों में
क्या कुछ नहीं होता ?

जीवन की आशा,
जीने की इच्छा,
चाहने की भूख,
न चाहने की निराशा,

सुर्ख आकाश की
लाल उर्जा से लबरेज,

कहाँ से लाती हो ये सब?
ये सारा कुछ,

हवा से भेज दो थोड़ा
मुझे भी,
कर लो बातें फिर से अंतराल के बाद ।

ग़ज़ल,

मैं हूँ सूली पे चढ़ने को तैयार मेरी जान ए जिगर /
तुम मेरे इश्क में गिरफ्तार नज़र आओ तो ।

हाँ मैं मरहम भी तैयार किये देता हूँ /
दर्द ए दिल से लाचार नज़र आओ तो ।

चलेंगे एक ही कश्ती में चाँद तक जानाँ /
तुम इस सफर को तैयार नज़र आओ तो ।

मैं झुक जाउँ तुम्हारे प्यार में बरगद की तरह /
तुम भी पीसा की मीनार नज़र आओ तो ।

ग़ज़ल,


बहुत सीधी सड़क है और मैं हूँ,
थोड़ी उठा पटक है और मैं हूँ ।

सामने आईना है और मैं पीछे,
अक्स आगे है कहीं और मैं हूँ।

कौन दिखता है जब ढूंढा है मैंने,
है सर पर हाथ मेरा, और मैं हूँ।

मेरा चाँद

मेरा चाँद सो रहा है,
मेरे चाँद के टुकड़े के साथ,
वो दोनों
एक दूसरे के पास 
बिल्कुल वैसे ही हैं,
जैसे बादल
और बारिश की बूँदें,

रात के सन्नाटे
में घड़ी की टिक-टिक,
धीमी सांसे,
ऊपर नीचे होती छाती,
बिखरे बाल,
और चेहरे पर असीम संतोष,

ये सब कुछ
गवाही दे रहे हैं,
कि सुख परिभाषा में
नहीं ढूँढे जाते,
सुख बस
एक भाव है,
जो थमने पर आता है,

जब हम सोच
पाते हैं,
सोच से परे,
तब दिखते हैं
जिन्दगी के वो आयाम,

जिन्दगी छोटी नींद
से बड़ी नींद तक जाने
का सफर ही तो है,

इसलिए जब मैं
उन्हें सोते देखता हूँ,
तो नज़र आता है
मुझे "पुल सिरात",
जिस पर से होकर
जन्नत की ओर जाना होता है,

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

गज़ल

सब चाहते हैं इस दिल को,
ये दिल किसी को नहीं चाहता ।

रोते हुए वो बोला सबसे,
कोई है जो हँसी को नहीं चाहता ।

सब ढूंढते हैं खूबियाँ मेरी,
कोई मेरी कमी को नहीं चाहता ।

आसमान पर नज़र है रखी ,
ये परिंदा ज़मीं को नहीं चाहता ।

यां इंसान आदमी से डरता है,
आदमी आदमी को नहीं चाहता ।
_शाहिद

गज़ल

कहाँ है चाँद,सितारे कहाँ हैं?
खूबसूरत से वो नज़ारे कहाँ हैं?

शब ए हिज्र की तड़प तो है,
शब ए वस्ल की बहारें कहाँ है?

आईना होता तो नज़र आ जाता,
दिल जो टूटा है, दरारें कहाँ हैं ?

लगी है आग़ जिस्म जलता है,
पूछते हो तुम , कि शरारें कहाँ हैं ?

जो होती पत्थर की तो गिरा देता,
दिलों के बीच ऐसी दीवारें कहाँ हैं?

-शाहिद

मौसम में फूल

देखने चाहिए,
अप्रैल के महीने में
पेड़ों पर लगे पीले फूल,
इस मौसम में फूल 
पेड़ों पर लगते हैं,
हाँ , उन्हीं बड़े पेड़ों पर ।
और नये हरे पत्ते
जो लगते हैं धुले हुए
साफ पानी से,
इस मौसम में
देखने चाहिए,
पेड़ों से गिरे हुए
सूखे पत्ते
जो पुराने साल
का हिसाब कर चुकने के
बाद ज़मीन पर
घास पर आराम फरमा रहे होते हैं ।
जैसे कि मिट्टी से
कह रहे हों कि
लो हम मिल गये वापस ।
इस मौसम मेें देखने
चाहिए चिड़ियों के घोंसले,
जो वो बना रही होती हैं
सूखी टहनियों से,
ये मौसम बदलाव का है,
सर्दी की वो हवा
अब साथ छोड़ चुकी है।
अब बहने लगी है
वो सूखी हवा
जो आलस लाती है।
गर्मी आने से पहले की गर्मी ।
मौसम बदलता ही
तो रहता है ,
एक के बाद एक ।
पुराना नया
फिर पुराना ।
मौसम बदलते देखना चाहिए ।
~ शाहिद अंसारी 

उदासी

उदासी दिल के कोनों से
आँख के कोनों तक
कब जा पहुँचती है
पता ही नहीं चलता ।
दर्द से जो गला
दुखता है,
जाने कैसे
दिल का दर्द सा लगता है।
जैसे चेहरे पर
खून का आना बंद हो गया दिल से,
चेहरा कुछ ऐसे सफेद पड़ जाता है,
फिर मैं कैसे मान लूँ
कि दिल एक मशीन है ?
वो होगा
किसी के लिए,
मेरे लिए
तो वो ज़िंदगी का सबब है।
कुछ तो है दिल में,
जो जोड़े रखता है दिल को,
एहसासात से,
ख्यालात से,
ख्वाहिसात से,
और हर उस चीज़ से,
जिसे फर्क पड़ता है,
दिल के धड़कने से।
कैसे आवाज़ से पता चल जाता है
कि हाल ए दिल ठीक नहीं है ?
और फिर ये जानकर
कुछ ना कर पाने की बेचैनी
से कौन बच पाया है?
दिल जीता तो जा सकता है,
पर दिल से नहीं जीता जा सकता ।
दिल जीतने नहीं देता,
हरा देता खुद को,
जैसे शतरंज की बाज़ी
कोई दोनों तरफ से खेल रहा हो,
दिल कुछ ऐसे खेलता है ।
क्या ये खेल ऊपर वाला खेल रहा है?
~ शाहिद अंसारी

मंदसौर

मैंने देखे
नन्हें सितारे
जो आसमान में उग रहे थे।
उन सितारों को 
चुप करा दिया गया।
जिन आवाज़ों से
घर और बाहर गुलज़ार रहते थे,
वो खामोश हो गये हैं।
ये अब कोई एक
घटना नहीं,
हर रोज़ की कहानी है।
कभी इस शहर
कभी उस शहर,
कभी इस गाँव
कभी उस गाँव,
कहानियाँ वही
जो दोहरायी जाती रहीं,
वहशीपन इतना कि रूह
कांप जाय,
अब हम इंसान कहलाने
लायक नहीं,
हैवान अब चारों ओर हैं,
चाहें जिस तरफ नज़र डालिए।
~ शाहिद अंसारी 

सड़क के उस पार

सड़क के उस पार
एक जंगल था,
अब जंगल की
जमीन पर एक मॉल उग आया है।
मॉल विकास की परिभाषा है,
ऐसा पढ़ाया जाने लगा है
लोगों को,
अब किसी को याद नहीं
कि वहाँ कौन सा पेड़ हुआ करता था।
ऐसा नहीं कि जंगल से
लोगों का लगाव नहीं था।
जिन्हें था उन्होंने कोर्ट केस किये,
मगर जज साहब का लड़का
बिजनेस करना चाहता था।
मॉल बनाने वाली कंपनी में
उसे साझीदार बना लिया गया।
अब पर्यावरण की चिंता थोड़ी कम
हो गयी।
क्योंकि काम शुरू हो गया
इसलिए पब्लिक इंट्रेस्ट
में मॉल बनाने को मंजूरी मिल गयी।
एक चिड़िया मॉल पर मंडराती है,
उसका घोंसला कहीं नज़र नहीं आता।

~ शाहिद अंसारी 

ख्वाबों का गुब्बारा

मैं अपने ख्वाबों के
फूले
हुए गुब्बारों में
सुई चुभोकर
उन्हें पिचकाना चाहता हूँ।
जिससे कि वो अपनी
औकात में आ जायें ,
और मुझसे नज़र मिलायें।
ये हवा में
उड़ते गुब्बारे,
इसलिए उड़ पाते हैं
क्योंकि उनमें
अना भरी होती है।
कुछ बनने के
लिए अना को मिटाना ही पड़ता है।
अना जो कि सच से
हल्की होती है
वो इंसान को उड़ा कर
सातवें आसमान पर ले जाती है।
और खूबी तो ये
कि गुब्बारों की डोर
तो ऊपर वाले के हाथ में है ।
फिर भी उड़ने वाले
कहाँ रूकते हैं ।
इसलिए मैं अपने
ख्वाबों का गुब्बारा
सुई चुभोकर पिचकाना चाहता हूँ।
~शाहिद

बुधवार, 27 जून 2018

~ बारिश की पहली रचना

मौसम की पहली बारिश,
धुले पेड़,
गीली मिट्टी की  सोंधी  खुशबू,

आसमान में काले बादल
बातें कर रहे हैं पेड़ों से,

एक सीधी सड़क
जो पेड़ों को पार करके
बादलों तक पहुँच रही है।

देखते रहना,
ये सब
और हैरान होना कुदरत पर।

मन का उड़ना परिंदों सा,
बदन का भीगना बूँदों से,

चहलकदमी घर की बालकनी में,

और इन सब के बीच
निहारना शून्य को,

गिनना सांसों दोबारा से
जिन्हें गिनना भूल जाते हैं
रोज़ की कशमकश में ।

जीना हर घड़ी
या तब
जब मौका मिले
एहसास का 

ढूंढते रहना मौके
मौके जो नहीं मिलते
मौके जो खो जाते हैं,

समेट लेना बारिश
को हाथों में,

हवाओं को सर पर चढ़ा लेना
और उतरने न देना कभी,

क्योंकि बारिश एक मौसम भर नहीं
ये जीवन है।


~शाहिद अंसारी 

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

मैं समुंदर को डुबोना चाहता हूँ,

मैं समुंदर को डुबोना चाहता हूँ,
मैं पहाड़ों को गिराना चाहता हूँ,
मैं किनारों को मझधार बनाना चाहता हूँ,
मैं सूरज को पिघलाना चाहता हूँ,
मैं दरिया को जलाना चाहता हूँ,
मैं दरख्तों को इंसान बनाना चाहता हूँ,
मैं ऊलट पलट करना चाहता हूँ
वो सब कुछ जो सीधा तो है
पर सीधा नहीं होता ।
मैं खुदा से दुनिया की
रिहाई चाहता हूँ,
मैं दुनिया से बंदों की
जुदाई चाहता हूँ,
जो रूपये इकट्ठा करने में
मेरी खो गई,
मैं वो हर खोई हुई
पाई पाई चाहता हूँ ।।
तुम जन्नत चाहते होगे,
तुम इज्जत चाहते होगे,
तुम ये जहाँ चाहते होगे,
तुम वो जहाँ चाहते होगे,
मैं अपनी कलम के लिए
रोशनाई चाहता हूँ।
तुम आदमी चाहते हो,
तुम रोशनी चाहते हो,
मैं खुशबू में डूबी
तन्हाई चाहता हूँ ।
मैं नहीं जानता कि तुम
क्या चाहते हे,
मैं नहीं जानता कि
मैं क्या चाहता हूँ,
मैं वही चाहता हूँ,
जो खुदा चाहता है,
वो वही चाहता है,
जो खुदा चाहता है,
जो खुदा चाहता है,
वो खुदा चाहता हूँ,
मैं दवा चाहता हूँ,
बेवजह चाहता हूँ,
मैं बड़ा नासमझ हूँ
मैं क्या चाहता हूँ,
___शाहिद अंसारी

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

मेरे दोस्त, ये जवानी बेकार है,

My friend‪,‬ this youth is loss
‏I lost all day on the way

‏Why were we born‪? ‬
‏Why did we not die‪? ‬
‏Why such beautiful name‪s? ‬
‏We must wait for the Judgment Day
‏And I lost all day on the way

‏The way of the world is a meaningless storm
‏I invited a difficult fate
‏And I lost all day on the way

‏Many nightingales entered the garden
‏And they had their play
‏The flowers left the garden
‏To make way for the nightingales
‏And I lost all day on the way

‏Please protect me on the Day
‏Where there will be fire of Hell
‏Habba Khatoon will give you a call
‏And I lost all day on the way