मंगलवार, 10 जुलाई 2018

गज़ल

सब चाहते हैं इस दिल को,
ये दिल किसी को नहीं चाहता ।

रोते हुए वो बोला सबसे,
कोई है जो हँसी को नहीं चाहता ।

सब ढूंढते हैं खूबियाँ मेरी,
कोई मेरी कमी को नहीं चाहता ।

आसमान पर नज़र है रखी ,
ये परिंदा ज़मीं को नहीं चाहता ।

यां इंसान आदमी से डरता है,
आदमी आदमी को नहीं चाहता ।
_शाहिद

गज़ल

कहाँ है चाँद,सितारे कहाँ हैं?
खूबसूरत से वो नज़ारे कहाँ हैं?

शब ए हिज्र की तड़प तो है,
शब ए वस्ल की बहारें कहाँ है?

आईना होता तो नज़र आ जाता,
दिल जो टूटा है, दरारें कहाँ हैं ?

लगी है आग़ जिस्म जलता है,
पूछते हो तुम , कि शरारें कहाँ हैं ?

जो होती पत्थर की तो गिरा देता,
दिलों के बीच ऐसी दीवारें कहाँ हैं?

-शाहिद

मौसम में फूल

देखने चाहिए,
अप्रैल के महीने में
पेड़ों पर लगे पीले फूल,
इस मौसम में फूल 
पेड़ों पर लगते हैं,
हाँ , उन्हीं बड़े पेड़ों पर ।
और नये हरे पत्ते
जो लगते हैं धुले हुए
साफ पानी से,
इस मौसम में
देखने चाहिए,
पेड़ों से गिरे हुए
सूखे पत्ते
जो पुराने साल
का हिसाब कर चुकने के
बाद ज़मीन पर
घास पर आराम फरमा रहे होते हैं ।
जैसे कि मिट्टी से
कह रहे हों कि
लो हम मिल गये वापस ।
इस मौसम मेें देखने
चाहिए चिड़ियों के घोंसले,
जो वो बना रही होती हैं
सूखी टहनियों से,
ये मौसम बदलाव का है,
सर्दी की वो हवा
अब साथ छोड़ चुकी है।
अब बहने लगी है
वो सूखी हवा
जो आलस लाती है।
गर्मी आने से पहले की गर्मी ।
मौसम बदलता ही
तो रहता है ,
एक के बाद एक ।
पुराना नया
फिर पुराना ।
मौसम बदलते देखना चाहिए ।
~ शाहिद अंसारी 

उदासी

उदासी दिल के कोनों से
आँख के कोनों तक
कब जा पहुँचती है
पता ही नहीं चलता ।
दर्द से जो गला
दुखता है,
जाने कैसे
दिल का दर्द सा लगता है।
जैसे चेहरे पर
खून का आना बंद हो गया दिल से,
चेहरा कुछ ऐसे सफेद पड़ जाता है,
फिर मैं कैसे मान लूँ
कि दिल एक मशीन है ?
वो होगा
किसी के लिए,
मेरे लिए
तो वो ज़िंदगी का सबब है।
कुछ तो है दिल में,
जो जोड़े रखता है दिल को,
एहसासात से,
ख्यालात से,
ख्वाहिसात से,
और हर उस चीज़ से,
जिसे फर्क पड़ता है,
दिल के धड़कने से।
कैसे आवाज़ से पता चल जाता है
कि हाल ए दिल ठीक नहीं है ?
और फिर ये जानकर
कुछ ना कर पाने की बेचैनी
से कौन बच पाया है?
दिल जीता तो जा सकता है,
पर दिल से नहीं जीता जा सकता ।
दिल जीतने नहीं देता,
हरा देता खुद को,
जैसे शतरंज की बाज़ी
कोई दोनों तरफ से खेल रहा हो,
दिल कुछ ऐसे खेलता है ।
क्या ये खेल ऊपर वाला खेल रहा है?
~ शाहिद अंसारी

मंदसौर

मैंने देखे
नन्हें सितारे
जो आसमान में उग रहे थे।
उन सितारों को 
चुप करा दिया गया।
जिन आवाज़ों से
घर और बाहर गुलज़ार रहते थे,
वो खामोश हो गये हैं।
ये अब कोई एक
घटना नहीं,
हर रोज़ की कहानी है।
कभी इस शहर
कभी उस शहर,
कभी इस गाँव
कभी उस गाँव,
कहानियाँ वही
जो दोहरायी जाती रहीं,
वहशीपन इतना कि रूह
कांप जाय,
अब हम इंसान कहलाने
लायक नहीं,
हैवान अब चारों ओर हैं,
चाहें जिस तरफ नज़र डालिए।
~ शाहिद अंसारी 

सड़क के उस पार

सड़क के उस पार
एक जंगल था,
अब जंगल की
जमीन पर एक मॉल उग आया है।
मॉल विकास की परिभाषा है,
ऐसा पढ़ाया जाने लगा है
लोगों को,
अब किसी को याद नहीं
कि वहाँ कौन सा पेड़ हुआ करता था।
ऐसा नहीं कि जंगल से
लोगों का लगाव नहीं था।
जिन्हें था उन्होंने कोर्ट केस किये,
मगर जज साहब का लड़का
बिजनेस करना चाहता था।
मॉल बनाने वाली कंपनी में
उसे साझीदार बना लिया गया।
अब पर्यावरण की चिंता थोड़ी कम
हो गयी।
क्योंकि काम शुरू हो गया
इसलिए पब्लिक इंट्रेस्ट
में मॉल बनाने को मंजूरी मिल गयी।
एक चिड़िया मॉल पर मंडराती है,
उसका घोंसला कहीं नज़र नहीं आता।

~ शाहिद अंसारी 

ख्वाबों का गुब्बारा

मैं अपने ख्वाबों के
फूले
हुए गुब्बारों में
सुई चुभोकर
उन्हें पिचकाना चाहता हूँ।
जिससे कि वो अपनी
औकात में आ जायें ,
और मुझसे नज़र मिलायें।
ये हवा में
उड़ते गुब्बारे,
इसलिए उड़ पाते हैं
क्योंकि उनमें
अना भरी होती है।
कुछ बनने के
लिए अना को मिटाना ही पड़ता है।
अना जो कि सच से
हल्की होती है
वो इंसान को उड़ा कर
सातवें आसमान पर ले जाती है।
और खूबी तो ये
कि गुब्बारों की डोर
तो ऊपर वाले के हाथ में है ।
फिर भी उड़ने वाले
कहाँ रूकते हैं ।
इसलिए मैं अपने
ख्वाबों का गुब्बारा
सुई चुभोकर पिचकाना चाहता हूँ।
~शाहिद