बुधवार, 26 जून 2019

ग़ज़ल

***
ऐसे ही खर्च हो रहा है, लाचार आदमी,
ज़िन्दगी की उधेड़बुन में, तार-तार आदमी।

सुबह से दौड़ रहा, शाम को है सुस्ताता,
यही लड़ाई लड़ रहा है, बार-बार आदमी।

कभी ख्वाब का खंजर, कभी हक़ीक़त का,
रोज़ लेता है अपने अंदर, आर-पार आदमी।

खुशी बिखेर के हंसता है अक्सर दुनिया पर,
ग़म में रो रहा है अकेले, ज़ार- जा़र आदमी।

मुलायम दिल भी कहाँ रह पाता है सदा वैसा,
फूल बनने की कोशिश में, खा़र-ख़ार आदमी।

गुनहगार

***
गुनाह को जायज ठहराने के लिए
गुनहगार पैंतरे फेंकता है,

कहता है,
कि जिसको मारा वो चोर था,
कहता है
कि जिसको मारा वो गौ तस्कर था,
कहता है,
कि जिसको मारा वो बीफ खाता था,

गुनहगार होशियार है,
मगर कायर है।

वो खुल कर नहीं कहता कुछ,

वो नहीं कहता कि
जिसको मारा वो टोपी पहनता था
इसलिए मारा।

वो नहीं कहता कि
जिसको मारा वो जय श्री राम
नहीं कहता था
इसलिए मारा।

वो नहीं कहता कि
जिसको मारा वो वंदे मातरम
नहीं कहता था
इसलिए मारा।

वो नहीं कहता कि
जिसको मारा उसका नाम
तबरेज़ था
इसलिए मारा।

गुनहगार को गुनाह
कबूलने में शर्म आती है।

इसलिए अभी उसके
बदलने की गुंजाइश है।

गुनहगार से नफरत न करो,
उसे समझाओ,
कि वो जो कर रहा है वो गलत है।

गुनहगार मान जायेगा।

गुनहगार के दिल में नफरत है,
उसे प्यार से बुझाओ,

गुनहगार को अपने घर बुलाओ,
उससे पूछो,
कि उसे टोपी वालों से इतनी
नफरत क्यों है?

उससे पूछो
कि उसे तबरेज़ नाम वालों
से इतनी नफरत क्यों है?

उसे बताओ कि
कि तबरेज़ एक
शहर है ईरान का

उसे बताओ
कि एक सूफी था शम्स तबरेज़ी,
जिस से मिल कर रूमी
रूमी बन गया,
और दुनिया को प्यार का पैगाम दिया।

गुनहगार का
दिल पिघलेगा,

तब तक सब्र करो
और उम्मीद रखो,

कि खुदा
सब्र करने वालों के साथ होता है।

बुधवार, 19 जून 2019

ग़ज़ल

***
लरजते होंठों का, आशिक हूँ सुर्ख गालों का
तुम्हें खबर नहीं, तुम्हारा मुंतज़िर हूँ सालों का।

एक तुम्हारी दीद ही से है मुझे उम्मीद वरना,
शिफा करेगा कौन, हम ख़राब हालों का।

खुदा सुनता नहीं फरियाद, मगर तुम तो सुन लो,
वरना शोर बरपेगा चहुँ ओर हमारे नालों का।

कहूँ मैं क्या? , कोई मेरा हाल क्यूँ पूछे ?
कबसे घेरे है मुझे खौफ इन सवालों का ।

बहुत सूनी है बस्ती हुस्न-ओ-इश्क की याँ पर,
अब्र बरसा दो, याँ आकर तुम्हारे बालों का।

सोमवार, 17 जून 2019

गैस की पाइपलाइन

***

अखबार में खबर आई है,

२१ वी सदी की पहचान
गैस की पाइपलाइन बिछ रही है,

और उसे बिछाने को किया गया है
सड़क पर एक गड्ढा,

गड्ढे को भरने के लिए लाये गए हैं पत्थर,

और सड़क पर
पत्थर उठा रही है एक औरत,

पसीने से भरी हुई ,
पर हौसले से मजबूत,

पास में रखी है एक सीमेंट की बोरी
और उस पर सोया है
उसका बच्चा,

धुल और मिट्टी से सना हुआ
धुल और मिटटी के बीच,

फुटपाथ पर पलता हुआ ,
करवटें बदलता हुआ,

हमारा गणतंत्र ,
और उसका तिरंगा झंडा
खड़ा है वहीँ
शान से लहराता हुआ।

पास से एक
जुलूस निकल रहा है,
लोग नारा लगा रहे हैं।

जय हिन्द। 
जय हिन्द।  

सोमवार, 3 जून 2019

ग़जल


***
लिख तो रहा था ख्वाबों के परचे का मैं जवाब,
सवाल कुछ ऐसे थे कि जवाब ही नहीं।

जब मेरी नाउम्मीदी मिली उसकी उम्मीद से,
बरस पड़े वो ऐसे कि हिसाब ही नहीं।

चल तो पड़ा हूँ जानिबे ग़ैब की तरफ,
पर जल चुका हूँ इतना कि वो ताब ही नहीं।

फुर्सत मिली गुनाह की, गुनाह कर लिया,
अब कर रहा हूँ नेकी पर सवाब ही नहीं।

ग़ज़ल


***
इब्तदा ए इश्क का, कोई फसाना चाहता हूँ,
बात मुहब्बत की, मैं दोहराना चाहता हूँ ।।

तुम किस तरह मिले थे उस हर दिल अज़ीज़ से,
वो वाकया मैं सबको बताना चाहता हूँ ।।

दिल यूँ हीं तो तुम्हारा न हुआ होगा मुतमईन ,
वो किस्सा ए याराना , पुर ठिकाना चाहता हूँ ।।

लोग जीते हैं प्यार पर, और मरते हैं प्यार में,
दिल ढूँढता है जो, वो आब ओ दाना चाहता हूँ ।।

अमलतास के पीले फूल


***
मई के महीने
में खिले हुए 
अमलतास के पीले फूल,

तुम्हारे कानों पर टंगे
सोने के पीले झुमकों
की तरह लटकते हैं।

हरी पत्तियों से
छुपे पीले फूल,
कुछ अधखुले से,
और कुछ पूरे खिले हुए,

इस मौसम में जब हर
कहीं रंग उड़े हुए नज़र आते हैं,
ये फूल गर्मियों को
बर्दाश्त करने की ताकत देते हैं।

ग़ज़ल

***
दिल को अपनी ही हद से बेचैनी
आँख को हद की भी परवाह नहीं।


मुश्किलों से जो टकरा चुके हैं,
उनको आसानियों की चाह नहीं।

राह हर एक वहीं जाती है,
खुदा के घर की एक राह नहीं।

पल का साथ भी तो साथ है पर,
लोग कहते हैं वो हमराह नहीं।

हमने हर दर पे दी हैं आवाज़ें,
ढूंढता है जो वो गुमराह नहीं ।

सोमवार, 13 मई 2019

गुमनाम लेखक

***
हमें पढ़ना चाहिए
उन लेखकों को भी 
जो नहीं पढ़े गये अब तक,

उनका लिखा
जीवन का निचोड़
जो कागज़ पर लिखा तो गया
पर उसे कोई पाठक नहीं मिला।

हमें पढ़ना चाहिए
उन लेखकों को भी
जिनका नाम अब कोई
नहीं जानता,

जिन्होंने अपनी रातें
कुर्बान कर दीं
वो कहने के लिए
जो तब वो देख रहे थे,

क्योंकि जो बिक रहा है
वो रचना तो है,
पर जो नहीं बिक रहा है
वो कु-रचना ही हो
ऐसा ज़रूरी तो नहीं,
उसका संदेह तो तभी दूर होगा
जब उसे पढ़ा जाए।

हमें पढ़ना चाहिए उन
लेखकों को भी
जिनका जि़क्र
साहित्य के सम्मेलनों
में नहीं हो रहा,
और उनको भी
जिन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिला।

स्याही से सफेद
कागज़ पर जो चित्र
उन्होने उभारे
उसे खोज लेना चाहिए
भीमबेटका की गुफा की तरह,

क्या पता
कहीं अजंता और एलोरा
छिपा हो उन पुस्तकों में,

हमें पढ़ना चाहिए
उन लेखकों को भी जिन्हें
सुना नहीं गया उनके जीवनकाल में,
वो रह गये गुमनाम
अपनी किताबों की तरह।

और साथ ही रह गये
गुमनाम होरी और धनिया
सरीखे कई पात्र
जिन्हें जानना था
उस समाज को,

हमें पढ़ना चाहिए
उन लेखकों को भी
जिन्हें लेखक होने का दर्जा नहीं मिला।

जो बनकर रह गये
असफलता के एक प्रतीक
क्योंकि सफलता का माप
तभी होता है जब उसे तराजू पर रखा जाए।

~शाहिद

ग़ज़ल

***
हम न भूलेंगे मगर तुम भी याद रखना,
जब उसूलों की बात हो, तो अपनी बात रखना ।।

लोग गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं यहाँ,
ऐसी बातों से न डरना, तुम खुद को शाद रखना ।।

फूल कब रोज़ गुलज़ार करें हैं गुलशन को,
ख़ार से सही, मगर बाग़ को आबाद रखना ।।

तितलियों से न सही, रंग ए हिना से ही सही,
रंग जहाँ से मिले, हर रंग को आज़ाद रखना ।।

जिनको जलना है वो खुशी से जल जायेंगे,
तुम मगर खुद को कभी मत नाशाद रखना ।।

~शाहिद

गज़ल


***
खून आँखों में जमा रहता है,
अश्क दिल से बहता रहता है।

दिल धड़कता है, खुद से कहता है,
क्या कोई है जो यहाँ रहता है।

दिल मेरा सख्त हो गया हमदम,
दर्द इतना भी कोई सहता है।

~ शाहिद

गज़ल


***
तुम्हारे इश्क का सामान हूँ मैं,
बहुत मुश्किल नहीं, आसान हूँ मैं।

लबों पे ले तो आओ हसरते दिल,
फिर न कहना कि, बेजु़बान हूँ मैं ।

आ के बस जाओ तुम मेरे ही अंदर,
तुम जो तलवार हो, म्यान हूँ मैं ।

लिखा है खूँ ए दिल की स्याही से जिसे,
तुम वो नज़्म हो, जिसका उन्वान हूँ मैं ।

ज़फा से चल तो लो वफा की जानिब,
मिलूँगा मैं भी, दरम्यान हूँ मैं ।

इबादतों के सिलसिले नहीं रूकेंगे कभी,
तुम मेरा दीन हो, ईमान हूँ मैं ।

~ शाहिद

नूह की कश्ती

मैं
चादर के एक
हिस्से से जुड़ा
लटका हुआ हूँ,
आकाश
और पाताल के बीच 

जहाँ मैं हूँ
वहाँ कोई आना
नहीं चाहता,

कपड़े का वो छोटा सा
सिरा जिसके सहारे
मैं टिका हुआ हूँ
वो टूटेगा
तब जब उसे नहीं टूटना चाहिए ।

पर मेरे कहने से क्या होता है?

क्या नूह की कश्ती मेरे
कहने से बनी थी?

नहीं ना।

चौकीदार

_______
चौराहे पर खड़ा है
चौकीदार,
कर रहा है
खबरदार,

हो जाओ अब
समझदार।

कि सुन लो बात
पते की यार।

किधर से आई है ये रेल,
कि जिसमें हो गयी ठेलम ठेल,

इस रेलम पेल से
बचकर
जो भाई
हो आया है पार,
मैं उसको समझूं होशियार,
कि सुन लो बात पते की यार,

चौराहे पर खड़ा है
देखो कैसा चौकीदार,
कि तुम
हो जाओ खबरदार,

मंडी में है जाम,
कहाँ अटका है अपना काम?
जब गाँधी हैं अपने साथ,
तो फिर चिंता की क्या है बात,
मिलेगा सब कुछ मांगो तुम,
कहो चिंता का समाचार,
खड़ा है सामने चौकीदार,
कि हो जाओ अब समझदार,
सुनो तुम बात पते की यार ।

पी एफ नहीं कटता
मिलती नहीं छुट्टी
एक भी दिन,

घर वाले भी
होली दीवाली
हैं मनाते मेरे बिन,

गेट पर
जिसको रोकूँ
वो देता है
मुझे गिन गिन,

आसानी का काम नहीं
बड़ा मुश्किल समाधान,
फिर भी हर रोज़
ड्यूटी पर मिलता है चौकीदार,
कि हो जाओ
अब खबरदार।

सपने बेचे,
अपने बेचे,
अब मैं बेच रहा दीवान,
मुश्किल से जो
जमा किया था थोड़ा सा सामान,

वही सब लेकर मैं
दौड़ पड़ा हूँ मरने को तैयार,

बड़ी मुश्किल है मेरे यार,
सुन लो बात पते की यार,

चौराहे पर खड़ा
जो दिख रहा है चौकीदार,
उससे कर लो बातें चार ।

ग़ज़ल

बना है मौत का सौदागर, चाराग़र मेरा,
शोलों की ज़द में आ गया है, आज घर मेरा।।

किसी सूरत न बदलेगी सूरत मेरी,
मेरी तक़दीर का मालिक है, सितमगर मेरा।।

तमाशे रोज़ हो रहे हैं हर तरफ मेरे,
डोर कोई भी खींचे होता है, मंज़र मेरा ।।

वही कातिल, वही मुंसिफ, वही गवाह है याँ,
क्यों न फिर रोज़ कलम हो, यहाँ पे सर मेरा।।

~ शाहिद अंसारी

बहार के फूल

बहार के फूलों
पर भंवरों की तरह मंडराते
लोग कब समझेंगे
कि फूल कैसे खिलते हैं?

फूल खिलते हैं
क्योंकि भंवरे बांटते हैं पराग,

फूल खिलते हैं
क्योंकि उन्हें खिलना होता है,
सब कुछ सह कर ,
धूप बारिश से लड़ना होता है,

इन सब से पार पाकर
जब फूल खिलते हैं ,

तो खिलते हैं चेहरे,
बनते हैं रंग
और हो जाती है दुनिया
रंग बिरंगी ,

फूलों का खिलना अनायास नहीं होता ,
ये चक्र है
जीवन मरण का ,

फूल जीवन हैं
मुरझाये फूल मौत ,

~ शाहिद

दिल के टुकड़े

दिल के टुकड़े
कांच के नहीं होते,

चुभते बिल्कुल भी नहीं
बस समेटे नहीं जाते,

एक क़तरा
तुम्हारे हिस्से,
एक मसाएल के नाम,

कुछ मध्धम सी
मीठी सी हंसी के नाम,
कुछ चेहरे की खुशी के नाम,

मैं दिल बांट देता हूँ,
कि बाँटने से दिल हज़ार हो जाते हैं,

यूँ तो लोग खुशियाँ बाँटने की
बात करते हैं,
और दिल के टूटने की,

पर दिल के हिस्सों पर
कुछ ज्यादा काम हुआ नहीं अब तक।  

ग़ज़ल

हुस्न किस हाल है नहीं मालूम,
कौन सा साल है नहीं मालूम ।

चाँदनी अपने उरूज पे है,
रात पामाल है नहीं मालूम ।

दिल की हालत पता करे कोई,
दीग़र अहवाल है नहीं मालूम ।

रश्क करने की वजूहात न पूछ,
वो बेमिसाल है नहीं मालूम ?

इश्क की उम्र खुदा से पूछ बैठे,
वो ला ज़वाल है नहीं मालूम ।

~ शाहिद

मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

आभासी दुनिया ***

कुछ तारे 
टूटते हैं,
कुछ लोग
दुआ करते हैं।

कुछ लोग
शक करते हैं।

कुछ लोग
यकीन करते हैं।

पहले वाले लोग
दूसरे वालों को काफिर कहते हैं ।

दूसरे वाले लोग
पहले वालों को कट्टर कहते हैं ।

किसी को कुछ
पता नहीं,
कि ब्रह्माण्ड के एक छोटे
से टुकड़े पर,
हज़ारों प्रजातियों में
से एक प्रजाति
खुद को इतना सिरियसली
क्यों लेते हैं?

वो तो एक छोटा सा
फुल स्टाप हैं
इस बड़े से ब्रह्माण्ड में,

पर लोग कहाँ
मानते हैं,

उनके पास फंडे हैं,
अजीब गरीब,

अगर घूम फिर कर
देखा जाय
तो जीवन
बस  एक घोंसला,
कुछ अंडों,
को बचाने की कवायद है,

और बाकी
समय में खाने की तलाश,

अगर हमें
जीवन के बारे में सीखना है,
तो हमें नेचर
के पास जाना चाहिए।

प्रक्ित् से बड़ा
शिक्षक कोई और नहीं,

हम इंसानों
ने अपनी एक आभासी
दुनिया बना रखी है,
खुद को भरमाने के लिए,

इस के बाहर
सब कुछ
बहुत सीधा
और सरल है।।

~शाहिद

अपना अपना कैदख़ाना ****

कहाँ दिखता है
तारा
टिम टिम सा

यदि हम टकटकी न लगायें,

काले आकाश में,
अनेक तारें होते तो हैं,
पर हम देखने की कोशिश नहीं करते,

हमारी नज़र या तो नीचे है,
या सामने है,

इतनी फुर्सत ही नहीं
कि लेटें और
देखें आकाश की तरफ,

संसार छीन लेता है,
हम सबसे
हमारा मौलिक गुण,

ऊपर देखने का,
टकटकी लगाने का,

अब दुनिया चपटी
और सपाट हो गयी है,

सबसे ऊँची दूरी
हमारी और हमारे घर की छत
की है,

हम बस वही माप पाते हैं,

बस देख पाते हैं,
तीन पंखो वाले
इलेक्ट्रिक फैन को,

उसमें लगे जाला
जो शहर में फैले प्रदूषण
से काला हो गया है,

पहले सबके पास
होती थी एक छत,

जिस पर रात को इकट्ठा लोग
तारे देखते थे,
और देखते थे
कभी ईद का चाँद,

अब सब अपार्टमेंट
में रहते हैं,
यदि छत है भी
तो उस पर जाने की मोहलत ही नहीं,

घर में जलती
ट्यूबलाइट कभी
रात होने ही नहीं देती,

खिड़की पर लगा
परदा कभी दिन होने
ही नहीं देता,

हम सब कैद हैं,
अपने बनाये कैदखानों में,

~ शाहिद 

ग़ज़ल ###

हुस्न किस हाल है नहीं मालूम,
कौन सा साल है नहीं मालूम ।

चाँदनी अपने उरूज पे है,
रात पामाल है नहीं मालूम ।

दिल की हालत पता करे कोई,
दीग़र अहवाल है नहीं मालूम ।

रश्क करने की वजूहात न पूछ,
वो बेमिसाल है नहीं मालूम ?

इश्क की उम्र खुदा से पूछ बैठे,
वो ला ज़वाल है नहीं मालूम ।

~ शाहिद

फूल खिलते हैं

बहार के फूलों
पर भंवरों की तरह मंडराते
लोग कब समझेंगे
कि फूल कैसे खिलते हैं?

फूल खिलते हैं
क्योंकि भंवरे बांटते हैं पराग,

फूल खिलते हैं 
क्योंकि उन्हें खिलना होता है,
सब कुछ सह कर ,

धूप बारिश से लड़ना होता है,

इन सब से पार पाकर 
जब फूल खिलते हैं ,

तो खिलते हैं चेहरे,
बनते हैं रंग 
और हो जाती है दुनिया 
रंग बिरंगी ,

फूलों का खिलना अनायास नहीं होता ,
ये चक्र है 
जीवन मरण का ,

फूल जीवन हैं 
मुरझाये फूल मौत ,

~ शाहिद 

दिल के टुकड़े

दिल के टुकड़े
कांच के नहीं होते,

चुभते बिल्कुल भी नहीं
बस समेटे नहीं जाते,

एक क़तरा
तुम्हारे हिस्से,
एक मसाएल के नाम,

कुछ मध्धम सी
मीठी सी हंसी के नाम,
कुछ चेहरे की खुशी के नाम,

मैं दिल बांट देता हूँ,
कि बाँटने से दिल हज़ार हो जाते हैं,

यूँ तो लोग खुशियाँ बाँटने की
बात करते हैं,
और दिल के टूटने की,

पर दिल के हिस्सों पर
कुछ ज्यादा काम हुआ नहीं अब तक,

ग़ज़ल -------


बना है मौत का सौदागर, चाराग़र मेरा,
शोलों की ज़द में आ गया है, आज घर मेरा।।

किसी सूरत न बदलेगी सूरत मेरी,
मेरी तक़दीर का मालिक है, सितमगर मेरा।।

तमाशे रोज़ हो रहे हैं हर तरफ मेरे,
डोर कोई भी खींचे होता है, मंज़र मेरा ।।

वही कातिल, वही मुंसिफ, वही गवाह है याँ,
क्यों न फिर रोज़ कलम हो, यहाँ पे सर मेरा।।

~ शाहिद अंसारी

नूह की कश्ती

मैं
चादर के एक
हिस्से से जुड़ा
लटका हुआ हूँ,
आकाश
और पाताल के बीच 

जहाँ मैं हूँ
वहाँ कोई आना
नहीं चाहता,

कपड़े का वो छोटा सा
सिरा जिसके सहारे
मैं टिका हुआ हूँ
वो टूटेगा
तब जब उसे नहीं टूटना चाहिए ।

पर मेरे कहने से क्या होता है?

क्या नूह की कश्ती मेरे
कहने से बनी थी?

नहीं ना।

बुधवार, 16 जनवरी 2019

तुम आ जाओ

नज़्म
*****

तुम आ जाओ
*****

मैंने लिखी है छोटी सी दास्ताँ,
एक चेहरे और एक ख्वाब की,
एक हिस्सा अब भी अधूरा है,
तुम आ जाओ तो पूरा करूँ।

थोड़ी चाहतों की है चाशनी,
थोड़ी हसरतों का है शोरबा,
मैं बना रहा हूँ कुछ नया,
तुम आ जाओ तो पूरा करूँ।

मेरा दिल है अब भी धड़क रहा,
मेरी सांस है अब भी चल रही,
मैं जला रहा हूँ च़राग़ को,
तुम आ जाओ तो पूरा करूँ।

तरतीब नहीं किसी बात की,
नहीं बात है इक रात की,
ये फसाना चलेगा उम्र भर,
तुम आ जाओ तो पूरा करूँ।

बड़ी लंबी ये ग़म की रात है,
मेरा साया न अब मेरे साथ है,
मैं तन्हा ही चल तो पड़ा हूँ पर,
तुम आ जाओ तो पूरा करूँ।

~शाहिद

जन्नत का ख्वाब

जन्नत का ख्वाब
एक एैसा ख्वाब है
जिसको दिखाने से सब कुछ हो सकता है।

ये ख्वाब 
लोगों के लिए एक नशा है।
लोग जन्नत में इतना यकीन करते हैं,
कि आंखों के सामने दिख रहा सच
छलावा लगता है ।

लोगों को कह दिया जाता है कि
बस इतना सह लीजिए,
सब्र कीजिए,
उसके बाद सब आसान हो जायेगा।
लोग इस अफवाह पर यकीन कर लेते हैं।

जो यकीन नहीं करते
उनको जबरन मनवा दिया जाता है।
सवाल न तो दुनियावी जन्नत के बारे में
किया जा सकता है,
न तो आसमानी जन्नत के बारे में
किया जा सकता हैं,
सवालों से जन्नत के सौदागर खौ़फ खाते हैं ।