मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

आभासी दुनिया ***

कुछ तारे 
टूटते हैं,
कुछ लोग
दुआ करते हैं।

कुछ लोग
शक करते हैं।

कुछ लोग
यकीन करते हैं।

पहले वाले लोग
दूसरे वालों को काफिर कहते हैं ।

दूसरे वाले लोग
पहले वालों को कट्टर कहते हैं ।

किसी को कुछ
पता नहीं,
कि ब्रह्माण्ड के एक छोटे
से टुकड़े पर,
हज़ारों प्रजातियों में
से एक प्रजाति
खुद को इतना सिरियसली
क्यों लेते हैं?

वो तो एक छोटा सा
फुल स्टाप हैं
इस बड़े से ब्रह्माण्ड में,

पर लोग कहाँ
मानते हैं,

उनके पास फंडे हैं,
अजीब गरीब,

अगर घूम फिर कर
देखा जाय
तो जीवन
बस  एक घोंसला,
कुछ अंडों,
को बचाने की कवायद है,

और बाकी
समय में खाने की तलाश,

अगर हमें
जीवन के बारे में सीखना है,
तो हमें नेचर
के पास जाना चाहिए।

प्रक्ित् से बड़ा
शिक्षक कोई और नहीं,

हम इंसानों
ने अपनी एक आभासी
दुनिया बना रखी है,
खुद को भरमाने के लिए,

इस के बाहर
सब कुछ
बहुत सीधा
और सरल है।।

~शाहिद

अपना अपना कैदख़ाना ****

कहाँ दिखता है
तारा
टिम टिम सा

यदि हम टकटकी न लगायें,

काले आकाश में,
अनेक तारें होते तो हैं,
पर हम देखने की कोशिश नहीं करते,

हमारी नज़र या तो नीचे है,
या सामने है,

इतनी फुर्सत ही नहीं
कि लेटें और
देखें आकाश की तरफ,

संसार छीन लेता है,
हम सबसे
हमारा मौलिक गुण,

ऊपर देखने का,
टकटकी लगाने का,

अब दुनिया चपटी
और सपाट हो गयी है,

सबसे ऊँची दूरी
हमारी और हमारे घर की छत
की है,

हम बस वही माप पाते हैं,

बस देख पाते हैं,
तीन पंखो वाले
इलेक्ट्रिक फैन को,

उसमें लगे जाला
जो शहर में फैले प्रदूषण
से काला हो गया है,

पहले सबके पास
होती थी एक छत,

जिस पर रात को इकट्ठा लोग
तारे देखते थे,
और देखते थे
कभी ईद का चाँद,

अब सब अपार्टमेंट
में रहते हैं,
यदि छत है भी
तो उस पर जाने की मोहलत ही नहीं,

घर में जलती
ट्यूबलाइट कभी
रात होने ही नहीं देती,

खिड़की पर लगा
परदा कभी दिन होने
ही नहीं देता,

हम सब कैद हैं,
अपने बनाये कैदखानों में,

~ शाहिद 

ग़ज़ल ###

हुस्न किस हाल है नहीं मालूम,
कौन सा साल है नहीं मालूम ।

चाँदनी अपने उरूज पे है,
रात पामाल है नहीं मालूम ।

दिल की हालत पता करे कोई,
दीग़र अहवाल है नहीं मालूम ।

रश्क करने की वजूहात न पूछ,
वो बेमिसाल है नहीं मालूम ?

इश्क की उम्र खुदा से पूछ बैठे,
वो ला ज़वाल है नहीं मालूम ।

~ शाहिद

फूल खिलते हैं

बहार के फूलों
पर भंवरों की तरह मंडराते
लोग कब समझेंगे
कि फूल कैसे खिलते हैं?

फूल खिलते हैं
क्योंकि भंवरे बांटते हैं पराग,

फूल खिलते हैं 
क्योंकि उन्हें खिलना होता है,
सब कुछ सह कर ,

धूप बारिश से लड़ना होता है,

इन सब से पार पाकर 
जब फूल खिलते हैं ,

तो खिलते हैं चेहरे,
बनते हैं रंग 
और हो जाती है दुनिया 
रंग बिरंगी ,

फूलों का खिलना अनायास नहीं होता ,
ये चक्र है 
जीवन मरण का ,

फूल जीवन हैं 
मुरझाये फूल मौत ,

~ शाहिद 

दिल के टुकड़े

दिल के टुकड़े
कांच के नहीं होते,

चुभते बिल्कुल भी नहीं
बस समेटे नहीं जाते,

एक क़तरा
तुम्हारे हिस्से,
एक मसाएल के नाम,

कुछ मध्धम सी
मीठी सी हंसी के नाम,
कुछ चेहरे की खुशी के नाम,

मैं दिल बांट देता हूँ,
कि बाँटने से दिल हज़ार हो जाते हैं,

यूँ तो लोग खुशियाँ बाँटने की
बात करते हैं,
और दिल के टूटने की,

पर दिल के हिस्सों पर
कुछ ज्यादा काम हुआ नहीं अब तक,

ग़ज़ल -------


बना है मौत का सौदागर, चाराग़र मेरा,
शोलों की ज़द में आ गया है, आज घर मेरा।।

किसी सूरत न बदलेगी सूरत मेरी,
मेरी तक़दीर का मालिक है, सितमगर मेरा।।

तमाशे रोज़ हो रहे हैं हर तरफ मेरे,
डोर कोई भी खींचे होता है, मंज़र मेरा ।।

वही कातिल, वही मुंसिफ, वही गवाह है याँ,
क्यों न फिर रोज़ कलम हो, यहाँ पे सर मेरा।।

~ शाहिद अंसारी

नूह की कश्ती

मैं
चादर के एक
हिस्से से जुड़ा
लटका हुआ हूँ,
आकाश
और पाताल के बीच 

जहाँ मैं हूँ
वहाँ कोई आना
नहीं चाहता,

कपड़े का वो छोटा सा
सिरा जिसके सहारे
मैं टिका हुआ हूँ
वो टूटेगा
तब जब उसे नहीं टूटना चाहिए ।

पर मेरे कहने से क्या होता है?

क्या नूह की कश्ती मेरे
कहने से बनी थी?

नहीं ना।