क्यों सोचते हो उसे रात भर
क्यों याद करते हो घड़ी घड़ी
ये जो दिल ही दिल के
सवाल हैं
इनका कोई ठीक जवाब नहीं
क्यों हो चलते फिरते उन रास्तों पर
जहाँ मिलनी कोई मंज़िल नही
जो मुक़ाम हैं
वो बस इस शाम हैं
तुम्हें सुबह की जो तलाश है
तो और किसी जानिब चलो
नए ख़्वाबों से कर लो तुम दोस्ती
नए फलसफे कुछ बना भी लो
जो खत्म नहीं फिर हो कभी
उसी दास्ताँ से गुज़र चलो
क्यों याद करते हो घड़ी घड़ी
ये जो दिल ही दिल के
सवाल हैं
इनका कोई ठीक जवाब नहीं
क्यों हो चलते फिरते उन रास्तों पर
जहाँ मिलनी कोई मंज़िल नही
जो मुक़ाम हैं
वो बस इस शाम हैं
तुम्हें सुबह की जो तलाश है
तो और किसी जानिब चलो
नए ख़्वाबों से कर लो तुम दोस्ती
नए फलसफे कुछ बना भी लो
जो खत्म नहीं फिर हो कभी
उसी दास्ताँ से गुज़र चलो