मंगलवार, 27 जनवरी 2015

रात भर

क्यों सोचते हो उसे रात भर
क्यों याद करते हो घड़ी घड़ी

ये जो दिल ही दिल के
सवाल हैं
इनका कोई ठीक जवाब नहीं

क्यों हो चलते फिरते उन रास्तों पर
जहाँ मिलनी कोई मंज़िल नही

जो मुक़ाम हैं
वो बस इस शाम हैं

तुम्हें सुबह की जो तलाश है
तो और किसी जानिब चलो

नए ख़्वाबों से कर लो तुम दोस्ती
नए फलसफे कुछ बना भी लो

जो खत्म नहीं फिर हो कभी
उसी दास्ताँ से गुज़र चलो

बुधवार, 14 जनवरी 2015

साथ

साथ कितना चाहिए 

इतना की 
हाथ पकड़ के कह पाएं कुछ 
जो ऐसे नहीं कह पाते 

या फिर इतना जो कल 
याद करें तो सालों याद करते रहें 

क्या होता है जब 
ज़्यादा वक़्त भी थोडा लगता है

और कभी कभी थोडा
वक़्त भी बहुत ज़्यादा

जैसे खर्च न हो पाये

मंगलवार, 13 जनवरी 2015

"भर जाओ"

सर्दियों में कहते हैं 
कि  पुराने दर्द वापस आ जाते हैं,
और परेशान करते हैं,

सालों पुराने दर्द 
जो शायद भूल गए हैं आप 

ये भी याद नहीं 
कि  चोट कब और कहाँ लगी थी,

लेकिन जो  उठता है दर्द ,
तो जिस्म का वो हिस्सा याद करता है 
वो सारे मुक़ाम 

और दिल भी कहता है जख्मो से 
कि "भर जाओ"


आजकल

आजकल बातें कम रहती हैं 
तुम्हारे पास 
जैसे कुछ नया होता नहीं 
कहने को

जैसे हर चीज़ का असर
कम होता जाता हो धीरे धीरे 

पर कुछ चीज़ें तो बढ़ती 
घटती रहती हैं न 
चाँद की तरह

हम लोगों को भी होना चाहिए
चाँद की तरह

और हर महीने
नया सा बन के आ जाना चाहिए
अपने आसमान में

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

उम्मीद

तुझमे एक उम्मीद सा जलता है कुछ
उसको तूफानों से बचाये रखना 

वक़्त के साथ कम हो जाती है 
वो उम्मीद 
इसलिए कुछ ख्वाबों की लकड़ियाँ चुन के 
वक़्त वक़्त पे दिल के चूल्हे 
में झोंक देना 

ये जो उम्मीद है वो बरकरार रखती है एक गर्माहट ज़िन्दगी में 

और बचाये रखती है चेहरे की रौनक

वरना नाउम्मीद चेहरा
दूर से ही
एक सूखे पेड़ जैसा
अलग से नज़र आता है