बुधवार, 18 मार्च 2015

बस आगे चलते जाना है

कुछ साये उलझे उलझे हैं
कुछ बातें भी उलझी उलझी

तुम सुलझा देना रातों को
जब चाँद भी हो उलझा उलझा

कोई साया है तो लौटेगा
फिर हाल हमारा पूछेगा

तुम भी तब पास में आ जाना
उसकी हाँ में हाँ तुम मिला जाना

एक आइना है जो टूटेगा
फिर कोई मुझसे रूठेगा

दिल की बातें दिल ही जाने
तुम अपने आप समझ जाना

कल कैसा होगा क्या जाने
फिर होंगे नए कुछ अफ़साने

यूँही छोटी छोटी बातों में
ये वक़्त गुज़रते जाएंगे

ये बेतरतीब ज़माना है
बस आगे चलते जाना है

बस आगे चलते जाना है।