मंगलवार, 18 सितंबर 2012

एक ख़त

एक ख़त लिखना चाहता हूँ तुम्हे
बताने के लिए

की कैसा वक़्त बीता या कैसा
बीत रहा है अब भी,

खालीपन क्या होता है
ये जानने के लिए

ज्यादा मशक्क़त नहीं करनी पड़ती ,

नज़र आ जाता है
वो सूनी आँखों में ,

खोये खोये रहना
आदत नहीं भी थी
और बन भी गयी,

मौसम बदलते रहते हैं
खिड़की के उस पार

पर यहाँ का मौसम
हमेशा एक सा ही रहा है ,

नमी दीवारों में जम सी गयी है

धुप सीधी  भी पड़े
तो ये सीलन कम नहीं होती,

रगों में खून ठंडा
पद गया है,

पर वो चुभन दिल में अब भी है

वो बेकरारी
जो दिल में थी नहीं गयी अब तक,

हाँ , इस दरमियान वक़्त
बहुत गुज़र गया हैं,

मैदान में नयी घास उग आई है,

पड़ोस के लड़के भी बड़े हो गए हैं,

चेहरे पे झुर्रियां अब नज़र आने लगी हैं,
कुछ सफ़ेद बाल भी झाँकने लगे है यहाँ वहां,

हथेलियाँ अब भी लिखती है
गुजरी बातें

नए ख्याल अब भी आते है

पर पुराने ख्याल की तरह
तुम जमी हुयी हो वहीँ

जस की तस

एक ख़त लिखना चाहता हूँ तुम्हे ,
जिस से मै  गुज़र ज़ाऊ

उन सालों की तरह
दुनिया से दूर ,

एक नयी दुनिया में
सुकून के साथ

.................

बड़ा

क्यों तुम्हे ढूंढता हूँ
आधी रात को

फ़ोन स्विच ऑफ
किये बैठे हो,

मेरी एक बात नहीं सुनते,

तुम्हारी उम्र में मै  भी नहीं सुनता था,

आज समझ आता है
कि माँ रात को क्यों
परेशान होती थी,

हम समझ पाते हैं क्या कभी
किसी के प्यार को ?

हम सिर्फ उसका न होना
महसूस करते हैं,

ढूंढते हैं उसे

पर जब वो पास
होता हैं

हमे नहीं पता होता
कि वाकई क्या कीमत है उसकी,

घर आ जाओ जल्दी ,

मै  इंतज़ार कर रहा हूँ,

अगली बार ज़रूर बात
मान लेना मेरी,

मै  बड़ा हूँ .

तुमसे तो हूँ न?

अब जिद न करो,

और बात सुनों मेरी ..

............




ऊपर वाला

डर लगता है
उस ख्याल से भी

कि

कुछ हो जाएगा
जो अच्छा न हो शायद

और उस बात
से की कहीं कुछ

अच्छा हो ही गया तो,

लोग क्या कहेंगे ,

ऊपर वाले को दोष देंगे

ऊपर वाला किसको
देता है आखिर?

और किसको नहीं देता?

सबकी शिकायत सुनता है,

और सबको शिकायत भी है उस से

ढेरों ख्वाहिशों के बोझ तले

लोग उस से ही आस
लगाये बैठे रहते हैं

कहते हैं वो है ना
सब देख रहा है,

सुनेगा तुम्हारी भी,

सबकी सुनता है,
क्या सचमुच सबकी सुनता है?

सुनता होगा शायद
......

सोमवार, 17 सितंबर 2012

अँधेरे से

क्यों समझना मुश्किल होता है

उन बातों को भी
जो बहुत आसान होती है।

सीढ़ी बात
तब तक नहीं समझ आती

जब
तक कुछ अजीब न हो जाए
आपके साथ,

जो बात ,
दूसरों को डरा सकती है

वो आपको हंसी खेल लगती है,

क्योंकि आप नहीं गुज़रे
हैं उन रास्तों पर

जहाँ रौशनी नहीं होती
जहाँ आप अपने आप को पहचान
नहीं पाते,

अँधेरी सुनसान
गलियां

सिखाती है,

जीने का और मरने का
मतलब,

लड़ना सिखाती हैं

मुश्किलों से
और उस डर से

जो लगता है अँधेरे से

....

रविवार, 9 सितंबर 2012

...

हर पल बस
कोई पीछे लगा रहता है,

पल पल की खबर रखता है,
सही गलत का हिसाब भी,

नहीं रखता तो बस

एक दिल नहीं रखता

जो धड़कता हो,
महसूस करता हो,

सचमुच  की दुनिया
में  लोग,

मशीन जैसे होते हैं,

गुज़रा वक़्त ...!

उन मुठ्ठी  भर पलों के नाम
जब मै , मै हुआ करता था,

जब मेरे ख्वाब मेरे थे,
मेरी उम्मीदें मेरी ख्वाहिशें

किसी की गुलाम नहीं थी,

जब सर्द हवा धीरे से कानों में
लोरी सुनाती थी ,

जब सूरज आसमान से मुझे
मुंह चिढ़ता था,

या चाँद की अठखेलियाँ
मुझे वैसी ही लगती थी,

वो मासूमियत
जो हुआ करती थी होंठों पर,

अब गुज़रे वक़्त की बात लगती है.

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

......

आधी ज़िन्दगी  खोये खोये गुज़ार दी,

कभी सपनो  खोये
कभी अपनों  में खोये

किसको ढूँढा , किसको  पाया
ये  सोचने जो बैठे

तो दुनिया के दिलकश महकमों
में खोये,

वो जादू  की  झप्पी
वो मिलने  का वादा,

हकीकत से पर्दा  हटाकर जो देखा
मियां दुनियादारी  के सदमों  में खोये

मोहब्बत की आँधी में टूटा
जो बरगद

चमन से जो हो गयी थी
उनको शिकायत,

कली इक जो देखी
तो  मुस्का के हज़रत

बदन में हुई
इक हरारत में खोये।


शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

......

लफ़्ज़ों को बंधना नहीं पसंद है 
शायद,

ग़ज़लों में जब उन्हें बांधना 
चाहता हूँ,

तो वो धोखा दे दते हैं,

पानी की तरह नहीं बहते 
बर्फ की तरह अकड़  जाते है,


 मुझे नज्में पसंद हैं 
जिनका कोई 
पक्का रास्ता नहीं होता ,

वो तो बस बहती रहती हैं 
जिधर भी पानी 
का बहाव  उन्हें 
ले जाता  है।

वो उन संकरी गलियों से 
होकर भी गुज़र जाती हैं,
जहाँ ग़ज़ल की बहर 
 नहीं जा पाती,

ग़ज़लें एक निचोड़ लगती है,
जैसे उम्र भर 
की थकान 
मिटा रही हों 

....

...

न जाने किसलिए
 और न जाने 
कितनी बार पीछा छुड़ाना चाहा 

तुम्हारी याद पीछा नहीं छोडती है मेरा 

ज़ख्मों को कुरेदती रहती है;

नासूर बन गए है 
वो सारे लम्हे जो मुझसे 

ऐसे जुड़े हैं कि 
अलग नहीं होते कभी;

जागते
सोते
उठते 
बैठते 

बस वो मुड़  के  
चले आते है;

 याद दिलाने 
खुशियों भरे पल 

जो अब के खालीपन का एहसास 
ऐसे मन में भर देता है 

जैसे एक ज़हर 
भर गया हो नसों में 

जलने लगता है 
मेरा पूरा बदन 

एक अजीब सा 
बुखार 

जो न जाने कब 
उतरेगा 

......

ग़ज़ल,

तुमसे नज़रें मिला के देख लिया ;
हमने दिल को जला के देख लिया.

तुम मुझे अब भी याद आते हो;
हमने तुमको भुला के देख लिया।

अश्क आँखों से भी अब रूठ गए;
हमने खुद को रुला के देख लिया।


मंगलवार, 5 जून 2012

Kuch udaas chehre...!

Kuch udaas chehre
chaukhat pe khade

raah takte hain,

na jaane kaun gaya
tha kal,

na jaane kaun aayega,

ye intzaar,
ye ummeed,
ye bharosa
kabhi na tootne waala,

kal jo toot gaya
to jeena mushqil kar dega,

Zindagi ke jhoote
waade ,

aur kuch tooti kasme,

reh reh ke jalate hain,

par ek shaam jo chaukhat
pe chaand aayega,

sab bhool jaayenge
wahi log,

aur gale lag ke royenge,

un puraane zakhmon pe
marham lagayenge,

Ye ghana andhera chhat jaayega,

ujaale ruk jaayenge,
umaren lambi ho jaayengi,

hamesha rehne waala
neeras maahaul
phir wapas aa jaayega,

kal badlega,

par tab tak yunhi
chalta rahega,

intzaar kal ka,

inhi aankhon me
isi chaukhat par......!

रविवार, 3 जून 2012

B..c

kuch rasme thi ,
kuch aadat bhi,
aur kuch majboori maar gayi,

meri zindgi aise thi uljhi,
jo suljhaya to haar gayi.

magroor bhi the,
mash-hoor bhi the,

duniya ke nashe me choor bhi the,

ek jhonka aisa tha aaya,
jo baaki thi dushwaar huyi..(Zindgi),

tere  hi liye tadpa karte,
tere chalte sar peet liye,

jo haar aaye the kal parso,
wo aaj tujhi se jeet liye

ek rog use phir dhar laaya,
aur uska hi wo shikaar huyi..(Zindgi)..

बुधवार, 9 मई 2012

Ghazal..!

maut bas ek din ki baat nahin,
roz bas jaan se jaate rahiye !

udasiyan kaun chahta hai yahan,
har haal me muskurate rahiye..!

ek haadse se kyonkar dariye,
zindagi hai to aazmaate rahiye..!

gham bhi khushiyon ka hissa hai,
thoda thoda sa milaate rahiye..!

ग़ज़ल,

मुश्किलें क़ैद कर गया मेरी ,
वो मेरे दर्द  भी चुरा ले गया !

मेरी चाहतों में एक ही नाम  था,
वो नाम  भी  कोई दूसरा ले गया।

हिकारतों भरी नज़र से देखता था मुझे,
मुझसे जीने का आसरा ले गया !

मुझसे छीन कर ज़िन्दगी मेरी,
वो मेरी जान को कहाँ ले गया !

रविवार, 6 मई 2012

raat

kuch raaten jo musalsal 
chalti rehti thi akeli,

andhere ko paar karti huyi
subah ki taraf,

chaand ki roshni me 
raasta dhoondhte huye,

kuch musafir jo lag jaate
hain saath saath,

raat ke seene pe sar rakh ke 
so jaate hain,

raat unhe aasra dilaati hai
aur yaqeen bhi,

yaqeen ujaale ka,
ek nayi subah ka,

thandi hawaon ka
jo behne ko hongi 
subah hone se pehle,

subah chidiyon ka jhund
chaukhat pe aayega,

mitti ke pateele me 
rakhe daane chugne,

raat ka bhi apna ek dil hota 
hoga,

ab nahi hai par shayad pehle 
hua karta tha,

tab raat sisakti rehti thi
andhere ke takiye me sar chuppaye,

ab raat veeran si rehti hai,
yunhi chalti rehti hai har roz

usi tarah, usi tafaf,har roz....!


रविवार, 22 अप्रैल 2012

शहर

मुस्कुराहटों का शहर,
भीगी चाहतों का शहर,

उलझे ख्वाबों का शहर,

समेट लेता है,

उतार देता है ज़मीन पर,
और कभी आसमान पे चढ़ा देता है...

तोड़ देता है अन्दर तक,

बारिश में फिर न जाने कैसे
कुछ जान भर देता है,

छोड़ने नहीं देता,

चमक दमक ,
रौशनी भरी हुई चारों तरफ,

भुला देता है,
बहुत कुछ,

फिर याद दिलाता है
पुराना शहर,

झूठा कर देता है पुराने ख़्वाबों को,
नए ख्वाब सच कर देता है,

बहकाता है,

उड़ने का आसमान देता है,
पांव तले की ज़मीन खिसका देता है,

ढेरो करतब दिखता है
ये अजीब शहर......
 
    

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

मेरी दुनिया

मेरे दिल के अँधेरे कोने


अनजाने डर से भरे हुए,


वो दुनिया जो नहीं दिखाना
चाहती हूँ मै,

किसी और को,


ख़ास तौर से उनको,
जिन्हें मतलब नहीं,


जो नहीं समझ सकते 
मेरी उलझनों को,


छोटे छोटे फैसले,
छोटी छोटी मुश्किलें,


मै खुद हल कर सकती हूँ,


किसी के दखल की 
ज़रुरत नहीं समझती,


वो करना मुझे सही लगता है,


इसलिए नहीं कि वो सही है,


बल्कि इसलिए कि

मै वो करना
चाहती हूँ,

मुझे मेरी आज़ादी पसंद है,
मेरी दुनिया,

मेरी अपनी दुनिया
मेरी शर्तों पर

मेरे लिए....

गर्मियों की पहली रात

गर्मियों की पहली रात


माथे पर पसीने की कुछ बूँदें,


अलसाई रात 
वो पिछले साल वाली आज याद 
आई,

साँसे तेज़ चलना

और सुबह की ठंडी हवा का
इंतज़ार

सिर्फ उसी वक़्त
कुछ चैन मिलता है,


बिजली का गुल होना,


अक्सर मोमबत्ती के
साथ बैठ के,

परछाइयाँ पकड़ने का वो खेल
आज याद आया,

कितना बदल गया है वक़्त
पिछली गर्मी से इस गर्मी तक,


कुछ बाल और सफ़ेद हो गए हैं,


चेहरे की झुर्रियां
भी कुछ बढ़ गयी हैं,

पिछले साल की वो धूल
भरी आंधी में
उस पेड़ का गिरना भी आज याद आया,

मेरे वजूद का
एक सिरा जिस आग में जल
गया था पिछले 
साल,


कल रात उसका दूसरा सिरा
भी खोया,


तो वो याद आया...


सोमवार, 2 अप्रैल 2012

...

क्या हुआ? कि दिल उदास है आज,
क्या हुआ? जो नहीं हुआ पहले...


ग़ज़ल,

हौसले छोड़ के जाना चाहें,
हम भी साहिल को भुलाना चाहें..

अपनों से अब कोई उम्मीद तो नहीं,
हाँ, अपना सा कोई हम बेगाना चाहें..

 ज़िन्दगी बहुत मुश्किल हुयी है यहाँ,
 कहीं नया सा आशियाना चाहें..

परिंदा भटका है बहुत वक़्त से,
अब वो भी कुछ आब-ओ-दाना चाहे..

 

शनिवार, 31 मार्च 2012

कैसे कहें , किधर जाएँ,
की हम बताये क्या?


जो खुद को न समझ पाए,
तुम्हे समझाए क्या?

जो वादे कर के जाते हो
तो तोड़ते हो क्यों?

फिर ये भी कहते हो,
कि रिश्ता निभाए क्यों?




ये मानते है हम
कि यकीन कर न पाओगे,


पर ये भी मत कहो,
कि हम आजमाए क्यों?





गुरुवार, 29 मार्च 2012

जंजाल

किसी तरह
ये जहाँ छूट जाए


दूर हो जाऊं 
उन सबसे 


उनकी परेशानियाँ
कम करना चाहता हूँ,

मेरा होना परेशान
करता है उन्हें,


मेरी बातें तकलीफ
पहुँचाती है

मेरे साए उनके लिए
मुफीद नहीं,


मेरी परछाई
बदशगुन की तरह है
उनके लिए,

उनका हर
ग़म दूर करना चाहता हूँ,

मेरी फ़िक्र में जो रातें
काटी है उन्होंने

उसकी किश्तें किस तरह चुकाऊं


जो शामें मेरे इंतज़ार में गुजारी हैं
उनका मोल कैसे बताऊँ,


जो सुबह मेरे खातिर
बर्बाद   हुई उनका हिसाब कैसे
दूँगा,

कुछ करना चाहता हूँ,
पर सोच के रह जाता हूँ,

कुछ ऐसा हो की
रास्ते ख़तम हो जाएँ,


ज़िन्दगी एक अंधे मोड़
पे पहुच जाएँ,

शायद तब मै वापसी का
 रास्ता अख्तियार करूँ,

पर उस से पहले
इस जंजाल से निकलना चाहता हूँ,


...............







शनिवार, 24 मार्च 2012

पीला रंग

पीले कपड़े में
बीमार दिख रही थी तुम,


जैसे कुछ खाए
जा रहा हो अन्दर ही अन्दर,

जो फीकी मुस्कान
है चेहरे पर,


वो नहीं छुपा पाता


उस खालीपन का एहसास

जो कहीं घर कर गया है
तुम्हारे अन्दर,

पीला रंग न पहना करो,

लोग कहते है
पीलिया हो जाता है,

पता नहीं लोग सच कहते है,  या ?


बोलो..!

रात बहुत बेचैन रहती है.
रात बहुत सुनसान रहती है,

रात अधूरी रहती है
तुम्हारे बिना,


अँधेरा नही छटता,

सुबह नहीं होती

कभी  नहीं होती ,

सिर्फ एक रौशनी का एहसास
जगा देता है,

कोई ताजगी नहीं,

जैसे ज़हन पे
घास उग आई हो,

लम्बे वक़्त से
सीलन का एहसास ,

जो किसी धूप से,
किसी गर्माहट से

ख़तम नहीं होगी,


वक़्त यूँही तो नहीं रहेगा हमेशा?


बोलो..!


गुरुवार, 22 मार्च 2012

नया घर

बहुत रात हो जाती है,

जागते जागते
जागने की आदत पड़ गयी है शायद,


ख्वाब अधूरे पड़े
कैनवास पे ही रह जाते है,

रंग नहीं मिलते,

जिस दिन मिलते हैं,
उस दिन रंगने का वक़्त नहीं मिलता,


यादों के पौधे
मुरझा जाते हैं,

पानी नहीं मिलता,

जिस दिन मिलता है,
उस दिन बाढ़ आ जाती है,

पौधे डूब जाते हैं,

उम्मीदों के शीशे चटक जाते है,

बहुत गर्मी है
आज कल के वक़्त की हकीकत में,

नया घर ढूंढ रहा हूँ,


अपने लिए,


जहाँ कोई उम्मीद नहीं होगी,
और कोई याद भी नहीं,

और कोई ख्वाब भी नहीं होंगे,

रेगिस्तान के बीच की
एक सुनसान जगह...

सवाल

हर चीज़
जो ग़लत हो रही है ,

उसका ज़िम्मेदार
मै ही तो नहीं,

और लोग भी तो हैं,


उन्हें कोई कुछ क्यों नहीं कहता?

क्या जवाब देता उसे,

अब वो बड़ा
जो हो गया है,

सवाल कर सकता है,



....

दबा दबा सा

कहीं एक एहसास
ही तो था,

कल जो
सामने दिखा तो
बाहर आ गया,

मुझसे डरता है,

जाने किस बात से,

मै उसे कुछ नहीं
कहूँगा

पर उसे फिर भी
डर लगता है,

मुझसे ,
या मेरी परछाई से

कल हिम्मत जुटा कर बोल पड़ा,

आप बहुत बदल गए हैं/


सच ही तो है...

गुरुवार, 15 मार्च 2012

अफ़सोस

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,

उन बातों का जो हो रहे हैं अभी,
और उन बातों पर जो हो चुकी हैं,

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,

उन पर भी जो कभी हुई ही  नहीं,
और उन पर भी जो शायद हो सकती थी,

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,

उन बातों पर जिन्हें होने से
रोक दिया मैंने


और उन बातों पर भी जो नहीं रोक पाया
होने से


अफ़सोस जताना चाहता हूँ,


उन बातों पर
जिनपे मेरा कोई बस नहीं चलता,

और उन बातों पर भी जो मेरे बस में
होकर भी नहीं होती...


अफ़सोस जताना चाहता हूँ,  


उन बातों पर जो भुलाए नहीं भूलती,


और उन बातों पर भी जिन्हें मामूली समझ कर
या वक़्त की कमी से दरकिनार कर देता हूँ,..


अफ़सोस जताना चाहता हूँ, 


उन बातों पर जिनसे मेरा रिश्ता है,

और उन बातों पर भी जिनसे सबका
वास्ता है..

अफ़सोस जताना चाहता हूँ,
हर उस बात पे जिसके लिए

मै सोच पाता हूँ,

और कुछ नहीं कर पाता...


......

गुरुवार, 8 मार्च 2012

बुधवार, 7 मार्च 2012

धीमे धीमे...

एक ही तरह की
बातें करता हूँ हर रोज़,

हर रोज़ वही किस्सा सुनाता हूँ,


एक ही सवाल करता हूँ खुद से,


एक तरह की नज्में लिखता हूँ,


मेरे उन्वाँ नहीं बदलते कभी,


बदलते दौर में बीती बातों पे रोना,


ये बदलते वक़्त के साथ 
अच्छा रिश्ता 
तो नहीं निभा रहा हूँ मै,


मुझे भी
वक़्त के साथ बदलना चाहिए,

कच्चे ही सही
नए रास्तों पे चलना चाहिए,

नए ख्वाब देखना
शुरू करूं कैसे,

नदी की बहती धार के साथ
बहूं कैसे,


मै अचानक नहीं बदल सकता,


और धीमे धीमे कुछ करने की आदत
बहुत गहरा असर छोडती है...



......

मुझे इन आइनों से आज़ाद करो,
हर जगह तुम ही दिखते हो मुझे,


ग़ज़ल,

बादलों में छुप जाता कहीं ,
कोई किस्सा कभी तो पुराना होता...


जो कभी सुन ली होती ज़माने की हमने,
मेरे पीछे भी तो ज़माना होता..


दिल के दरवाजे से जो न लौट आता,
तो मै भी एक दीवाना होता..


कुछ रास्तों ने मुझे गुमराह किया,
वरना मै भी एक इंसान सयाना होता..


तुम्हारे लबों ने जो छू लिया होता,
वो नज़्म भी एक तराना होता..



...

आदतों को छोड़ना जो आसान होता,
दिल फिर इतना क्यों परेशां होता..


जो आँधियों ने उड़ा दिए होते सबूत उसके,
चमन के उजड़ने का कहाँ कोई निशाँ होता...

पहली बार में ही जो टूट गया होता,
ख्वाब वो फिर क्यों जवाँ होता..


मंगलवार, 6 मार्च 2012

आसानी ....

तुम आसमान पे रहते हो ,
मै ज़मीन पे दिखता हूँ,


इतना आसान नहीं दूरियों
को मिटा पाना....

मेरी बातों से परेशान होना,
मेरे दिखने से हैरान होना,

जो साथ मुश्किल लगे मेरा,
तो फिर चले जाना...

लोग पूछेंगे तुमसे,
जवाब मत देना,


जो चाहेंगे तुमसे लेना,
वो बात मत देना,


जब रास्ता आसान हो जाए,
तो मुझे भुला देना,


तुम खिलते रहना,
मौसम बदलते रहेंगे,


दोस्त बनाते रहना,
लोग मिलते रहेंगे,


जब याद आये कभी मेरी,
तो बस बतला देना,..


तुम तारों के साथ रहते हो,
मै सहरा न छोड़ना चाहूं,



इतना आसान नहीं दूरियों
को मिटा पाना...






सोमवार, 5 मार्च 2012

ग़ज़ल,

बहुत आसान लफ़्ज़ों में जवाब दिया उसने,
यहाँ के पानी में कोई गुलाब नहीं खिलता...

जिसे तुम ढूँढने आये हो मीलों चलकर,
वैसा कोई जवाब यहाँ नहीं मिलता..

अपने ख़्वाबों को अपने पास समेट कर रखो,
टूटे ख़्वाबों का कोई हिसाब यहाँ नहीं मिलता...

यूँ तो मिल जाता है बिन मांगे बहुत,
पर मांगने से यहाँ कोई अज़ाब नहीं मिलता..


..

दुनिया को, ज़माने को तेरी फिक्र कहाँ,
गर फायदा न हो तो तेरा ज़िक्र कहाँ,


Wish...!

मै ज्यादा तो नहीं माँगता,

बस इतना हो कि

घड़ी भर को मेरी याद
तुम्हारे पास आये,

कभी नींद में एक ख्वाब में
देख लो मुझको,


मेरी तस्वीर किसी पुरानी एल्बम 
में दिख जाए तुमको,


मेरी कोई बात याद आये तुमको,


किसी जगह मेरी आहट
सुनाई दे तुमको,


किसी किस्से के दरमियान में 
मै भी आऊं,


मै ज्यादा तो नहीं माँगता,

बस इतना हो कि

एक धागा कहीं से जुड़ा रहे तुमसे...!

...

दोनों में कोई अपनी आदतें नहीं बदलेगा,
तुम भुलाते रहना , हम याद करेंगे...

तुम खयालो को ग़ुलाम बनाते रहना,
हम आहटों को आज़ाद करेंगे..



....

मुड़ के पीछे अगर देख लिया होता,
वक़्त ने कुछ इंतज़ार कर लिया होता.

जो मैंने दिल की बात सुन ली होती,
तो शायद खुद पे ऐतबार कर लिया होता..

 

शनिवार, 3 मार्च 2012

ग़ज़ल,

दर्द दिल से मेरे निकलता भी नहीं,
दिल भी ज़ालिम है कि संभलता भी नहीं ..

न जाने कितने खुर्शीद हुए गुरूब यहाँ,
एक वो आफताब है कि ढलता भी नहीं,,

जल गया दिल का मेरे हर कोना मगर,
जहाँ तुम थे वो कोना , जलता भी नहीं..

एक काँटा सा चुभ गया था उस दिन,
मेरे सीने से लिपटा है ,निकलता भी नहीं...

तेरे इंतज़ार में खुली रखी है आँखें हमने,
छोट जाने के दर से , मै आँख मसलता भी नहीं..

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

...

आह तक जज़्ब कर गयी मेरी;
तेरी याद सब छीन ले गयी मुझसे...

 

शायद किसी दिन

तुम्हारे बाद क्या?

एक सवाल बन के आ जाता है,

यूँ तो तुम कभी थे भी नहीं,
पर तुम्हारे होने का एहसास बचा था कहीं,

आज वो भी चला गया,

क्या कोई किस्सा
बीच में ख़तम हो सकता है?

कुछ वाकये क्यों उम्र भर
चलते हैं साथ,

अपने वजूद से चिपक जाते है,

कितना भी छुडाओ नहीं छूटते..

तुम कुछ उन जैसे ही थे,

पर आज लगता है
कि तुमसे जुड़ाव

शायद उतना भी नहीं था,

तुम्हे खोने का दर जितना पहले
था आज नहीं,

पर एक सन्नाटा है,
एक ख़ामोशी,

शायद किसी दिन

इस ज़मीन
पर फिर से कोई हलचल होगी,...

....  


गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

....

अजीब हाल है अब किसी पे मेरा बस नहीं चलता,
न दिल पे काबू , न अपनी किस्मत पे इख्तियार है..


दिल सिमट जाता है ,सीने में डर से अब तो,
आहटें दूर से, जब भी यहाँ पे आती हैं.....

न जाने कौन सी कश्ती को किनारा मिलेगा,
ये सोचती हैं कश्तियाँ, जो लहरों से टकराती हैं,


ये शहर

बहुत कुछ होता है
सुबह से शाम होने तक,

बीच में याद भी नहीं रहता
की सांस चल रही है मेरी,

जिंदा होने का एहसास तब तक
नहीं आता,
जब तक कहीं लिखी दो अच्छी
लाईनें  न पढ़ लूं ,

किसी का फ़ोन आने पर
ये सवाल की "मै भूल गया हूँ उसे?"

जवाब नहीं सूझता,

मुझे मेरे होने की याद
ही नहीं रहती है,

रात हो जाती है जल्दी,

कुछ चेहरे देख सो जाता हूँ
आँखों में ,

कुछ दिखता भी तो नहीं ऐसा,

ये शहर कितना बड़ा है ,

मगर उसके दिल में जगह नहीं है
हम जैसों के लिए..
  ......
  

 

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

...

एक वक़्त में 
कितनी चीज़ें सोच सकते हैं हम,

वो सब बातें 
जो बिलकुल मामूली जान पड़ती हैं,
कितनी अहमियत रखती हैं,

एक छोटी सी हँसी की क्या 
कीमत होगी भला?

किसी को खुश करना 
कुछ ज्यादा मुश्किल तो नहीं...
 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

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क्या फर्क पड़ता है 

अगर मै तुम्हारी तस्वीर 
थोड़ी देर को देखता रहूँ,

आज अलग दिख रहे हो तुम,

खुद जैसे नहीं,

जैसे किसी दूसरी दुनिया से आये हो,


....

मै बात करना चाहता हूँ तुमसे

बस थोड़ी देर,
मुझे पता है तुम सुन लोगे,
मेरी बातें,

पर हिम्मत नहीं होती,

मै तुम्हे भुलाना चाहता हूँ क्या?

शायद नहीं,

मै तुम्हे याद रखना चाहता हूँ,
पर याद नहीं करना चाहता,

दोनों बातों में कोई फर्क तो है...   

........

लोग पसंद नहीं करते मुझे,

सच बोलना गुस्ताखी लगती है

लोग वही सुनना चाहते हैं
जो वो सुनना चाहते हैं,

आपको  इसलिए   दरकिनार 
कर दिया जाता है 

क्योंकि आप अलग सोचते है,

सोच जो थोड़ी सी आज़ाद है,

बुधवार, 25 जनवरी 2012

...

मेरा दिल क्यों धड़कता है 
ये तुमसे पूछता हूँ  जब;

तुम्हारी गाल का तिल भी;
ये सुन के मुस्कुराता है...

मैं चलता हूँ सड़क पर जब 
ज़माना साथ चलता है,

मै रुकता हूँ जो कुछ पल को
अकेला छोड़ जाता है .....

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

आसान रास्तों पे चल के

आसान फैसले लेकर
ज़िन्दगी  मुश्किल में पड़ जाती है

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

दिल मे तेरे कुछ तो एतबार रहा होगा .।
थोड़ा ही सही दिल मे तेरे प्यार रहा होगा ..।

जीने की कोशिशें उसने यूंही न छोड़ दी;
मरने का उसके कुछ तो आसार रहा होगा। 

वीरान मकान के खुले दरवाजे बताते हैं;
किसी शख्श के आने का इंतज़ार रहा होगा।

....शाहिद

मंगलवार, 17 जनवरी 2012