शनिवार, 27 जुलाई 2013

अक्स

मै बस एक अक्स बन के रह गया हूँ,

एक परछाई मेरे पिछले
वजूद की,

जब मै चलता हूँ,
और हवा कानोँ के करीब
से गुज़रती है
तो मै हैरान नहीं होता,

न मैं ओस की बूंदों को
अपने हाथों में लेकर
पहले की तरह ढूंढता अपना
चेहरा उनमे,

ना  अब आहटों से वो
चहक रहती है
जो कभी हलकी सी
आवाज़  से बिखेर
देती थी चेहरे पे एक ख़ुशी,

रूह जैसे छीन ली जाए
कुछ उस तरह
मै मशीनी पुर्जे
की मानिंद एक सुर
में चला जाता हूँ,

रुकने का इंतज़ार है मुझे
जब ये सफ़र थम जाएगा,

और मुझे मेरा वजूद वापस
मिल जाएगा।



शनिवार, 20 जुलाई 2013

......

अब वो सियाही , कलम , दवात नहीं ,
मेरे हाथों में उसका हाथ नहीं।

जिसकी जानिब आवाज़ देते थे,
उसी आवाज़ का अब साथ नहीं।


....

हमने दिखाया हाथ तो अनजान हो गयी,
लगता था दो घड़ी का इम्तिहान हो गयी।

वो सारे शहर से लड़ाती रही ज़ुबान ,
जो हमने नाम पूछा , बेजुबान हो गयी।

बात मुश्किल बड़ी थी पर कुछ इस तरह,
वो मुस्कुरा के बोली कि आसान हो गयी।

उसका शहर भी मेरे शहर के करीब था,
जब रास्ता पूछा तो फिर पहचान हो गयी।

 

...

आइना शौक़ से देखो जो देखना चाहो ,
शक्ल अपनी नहीं पर पाओगे तुम,

कितने चेहरे छुपाये फिरते हो,
साफ़ कैसे नज़र आ जाओगे तुम,

गीत सुनो या कोई ग़ज़ल सुन लो,
सुनाओगे तो मर्सिया ही सुनाओगे तुम,

मुस्कुराने से किसको देते हो धोखा ,
दिल की तंगहाली ही दिखाओगे तुम।

रैट रेस

आजकल लिखना कम हो गया है,

टाइम लाइन देखा तो पता चला
कि
उतना भी नहीं लिखा
जितना पहले एक महीने में लिख लेते थे,

वक़्त बदल रहा है,

एहसास तब होता है जब
किनारे खड़े होकर देखने का वक़्त
मिल जाता है.

वरना ऐसे ही दौड़ते रहते है
रैट रेस कहते हैं जिसे अंग्रेज़ी में ,



ग़ज़ल,

ये शाम फ़कत दिल को जलाने के लिए है ,
ये जान भी अब घर को जाने के लिए है .

जो भी है दिल में प्यार बचा, मेरा कुछ नहीं,
ये सब भी बस  तुम  पे लुटाने के लिए है .

गर्दिश में सितारे रहेंगे उम्र भर नहीं,
वक़्त ये तुमको आज़माने के लिए है.

बरसेगा फलक से चाँद भी, सूरज भी सब्र कर,
क़यामत भी कोई चीज़ है, आने के लिए है.

बियाबान उजाड़ के परिंदों का कहते है,
जो आएगी तरक्की वो ज़माने के लिए है.