रविवार, 31 मार्च 2013

चॉकलेट

तुम्हारी दी हुई चॉकलेट
दो दिन तक पड़ी रही वहीँ बिस्तर पर,

नहीं उठायी हमने ,

जाते आते देखते रहे उसे,

उसका आधा खुला रेपर
और उसके टुकड़े ,
याद दिलाते रहे ,
वो हिस्सा जो तुम्हारा था


तुम

तुम नज़र आई उस दिन
कुछ परेशान सी ,

बगल में बैठी जब
तुम रो पड़ी थी ,

सोचा अपना कन्धा दे दे
तुन्हें रोने को ,

और तुम्हारे आंसूं पोछे ,

पर जाने क्या था जो
रोक गया मुझे,

नहीं देखना चाहता तुम्हे
उदास इतना ,

ज़िन्दगी से इतनी मायूसी,

मुझे पता है तकलीफे है
पर किसकी ज़िन्दगी में नहीं है परेशानियाँ ,

तुम्हारी नयी तरह की होंगी,

पर तुम बहादुर बनो,

मुस्कुराओ और कह दो मुश्किलों से
की कहीं और जा बसे,

तुम्हारा दिल वो  जगह नहीं .


क्रिकेट

ज्यादा वक़्त तो नहीं हुआ ,
पर लगता है

जैसे एक अरसा बीत गया हो,

जब उस गली में हम क्रिकेट खेलते
हुए कब बड़े हो गए,

पता ही नहीं चला,

घर में कबाड़ में रखा बल्ला
अब भी याद करता है शायद

वो पुरानी गेंद
नज़र आ जाती है,

और याद आता है वो इतवार का दिन
जब दौड़ पड़ते थे ,

एक मैच से दुसरे मैच की तरफ ,

एक शॉट की तरह ही  लगा होगा,
जीवन का झटका हमे भी,

और हम हवा में आज भी उड़ रहे हैं ,

लपके जाने को,
या बाउंड्री क्रॉस करने को,