मैं समुंदर को डुबोना चाहता हूँ,
मैं पहाड़ों को गिराना चाहता हूँ,
मैं किनारों को मझधार बनाना चाहता हूँ,
मैं पहाड़ों को गिराना चाहता हूँ,
मैं किनारों को मझधार बनाना चाहता हूँ,
मैं सूरज को पिघलाना चाहता हूँ,
मैं दरिया को जलाना चाहता हूँ,
मैं दरख्तों को इंसान बनाना चाहता हूँ,
मैं दरिया को जलाना चाहता हूँ,
मैं दरख्तों को इंसान बनाना चाहता हूँ,
मैं ऊलट पलट करना चाहता हूँ
वो सब कुछ जो सीधा तो है
पर सीधा नहीं होता ।
वो सब कुछ जो सीधा तो है
पर सीधा नहीं होता ।
मैं खुदा से दुनिया की
रिहाई चाहता हूँ,
मैं दुनिया से बंदों की
जुदाई चाहता हूँ,
रिहाई चाहता हूँ,
मैं दुनिया से बंदों की
जुदाई चाहता हूँ,
जो रूपये इकट्ठा करने में
मेरी खो गई,
मैं वो हर खोई हुई
पाई पाई चाहता हूँ ।।
मेरी खो गई,
मैं वो हर खोई हुई
पाई पाई चाहता हूँ ।।
तुम जन्नत चाहते होगे,
तुम इज्जत चाहते होगे,
तुम ये जहाँ चाहते होगे,
तुम वो जहाँ चाहते होगे,
तुम इज्जत चाहते होगे,
तुम ये जहाँ चाहते होगे,
तुम वो जहाँ चाहते होगे,
मैं अपनी कलम के लिए
रोशनाई चाहता हूँ।
रोशनाई चाहता हूँ।
तुम आदमी चाहते हो,
तुम रोशनी चाहते हो,
तुम रोशनी चाहते हो,
मैं खुशबू में डूबी
तन्हाई चाहता हूँ ।
तन्हाई चाहता हूँ ।
मैं नहीं जानता कि तुम
क्या चाहते हे,
मैं नहीं जानता कि
मैं क्या चाहता हूँ,
क्या चाहते हे,
मैं नहीं जानता कि
मैं क्या चाहता हूँ,
मैं वही चाहता हूँ,
जो खुदा चाहता है,
वो वही चाहता है,
जो खुदा चाहता है,
जो खुदा चाहता है,
वो वही चाहता है,
जो खुदा चाहता है,
जो खुदा चाहता है,
वो खुदा चाहता हूँ,
वो खुदा चाहता हूँ,
मैं दवा चाहता हूँ,
बेवजह चाहता हूँ,
बेवजह चाहता हूँ,
मैं बड़ा नासमझ हूँ
मैं क्या चाहता हूँ,
मैं क्या चाहता हूँ,
___शाहिद अंसारी