देना चाहता हूँ एक चुटकी
उदासी तुमको भी ,
तुम भी छटांक भर
ख़ुशी मुझे लौटा देना।
दिन बड़े छोटे कहाँ
होते हैं,
दिन तो मीठे और फीके
होते हैं।
थोड़ी सी मिठास
भर जाती है
अगर तुम्हारा चेहरा नज़र आ जाता है ,
जब दूर हो
तो बस आवाज़ ही काफी है।
पर कभी कभी मन नहीं लगता,
ऐसे ही जैसे
बोरियत हो जाती है,
दिन रात से ,
बैठे रहने से ,
सोते रहने से ,
उठने से ,
चलने फिरने से भी मन ऊब जाता है।
फिर याद आती है तुम्हारी,
तुम्हारी आँखों की ,
तुम्हारी बातों की,
तुम्हें छूने के पल याद आते हैं।
फिर नए जीवन की
कोशिश तो करनी ही होती है।
इंसान रुक ही तो नहीं सकता ,
रुकना जैसे कोई बहुत भारी चीज़ हो ,
मन करता ही कोई खुद रोक दे ,
पुकार ले ,
किनारे से ,
या फिर कोई नाव लेकर आ जाए।
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