रविवार, 4 जुलाई 2010

बदलाव बहुत ज़रूरी है

बदलाव बहुत ज़रूरी है

रोज़मर्रा कि चीज़े
एक ढर्रे में बंधी ज़िन्दगी

सब कुछ एक रुके हुए
पानी कि तरह हो जाता है

गन्दा और बेकार

किसी दिन जब जोर कि बरसात होती है
कई छोटे बाँध टूट जाते है

पर वो ज़मीन वापस  ऐसी हो जाती है
कि कुछ नए पौधे उग सकें

और खुली हवा में सांस ले सके..

इसलिए बदलाव बेहद ज़रूरी है

  * शाहिद

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