तुम्हारी नाक का तिल
रोक लेता है मेरी धड़कन
ध्रुव तारे सा एक ही जगह
टिका हुआ
ढूढने वालों को
रास्ता दिखा रहा हो जैसे
जब देखा था पहली बार
तब से लेकर
हर बार पहली नज़र
वहीँ जाती है,
उसे देखता हूँ तो लगता
है कि तुम हो,
आकाश में खोई हुई
ढूंढती हुई जाने क्या ?
रोक लेता है मेरी धड़कन
ध्रुव तारे सा एक ही जगह
टिका हुआ
ढूढने वालों को
रास्ता दिखा रहा हो जैसे
जब देखा था पहली बार
तब से लेकर
हर बार पहली नज़र
वहीँ जाती है,
उसे देखता हूँ तो लगता
है कि तुम हो,
आकाश में खोई हुई
ढूंढती हुई जाने क्या ?
1 टिप्पणी:
सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
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