एक बेचैनी हमेशा रहती है
उसके दिल में ,
इस बात का डर
सताता रहता है उसे ,
कि घर से दूर उसके बच्चे कैसे हैं ?
खाने पीने के बारे में
जितनी हिदायतें दी जा
सकती हैं ,
वो हर रोज़ फ़ोन पे दे दिया करती है।
वो समझती है कि
दूर रहना वक़्त कि ज़रुरत है ,
पर माँ का दिल कभी मानता है भला
वो तो चाहती है बस यही
कि उसके जिगर के टुकड़े उसके पास रहें।
दूरियाँ जो नए दौर में बढ़ गयी हैं ,
उसमे उसके दिल कि बात तो किसी ने
पूछी ही नहीं ,
न कभी जानना चाहा,
नया दौर कितना कुछ
छीन रहा है लोगों से
और बदले में क्या दे रहा है
थोड़ी सी आज़ादी ,
ये थोड़ी आज़ादी कहीं कुछ
ज्यादा तो नहीं ले रही ?
- शाहिद अंसारी
उसके दिल में ,
इस बात का डर
सताता रहता है उसे ,
कि घर से दूर उसके बच्चे कैसे हैं ?
खाने पीने के बारे में
जितनी हिदायतें दी जा
सकती हैं ,
वो हर रोज़ फ़ोन पे दे दिया करती है।
वो समझती है कि
दूर रहना वक़्त कि ज़रुरत है ,
पर माँ का दिल कभी मानता है भला
वो तो चाहती है बस यही
कि उसके जिगर के टुकड़े उसके पास रहें।
दूरियाँ जो नए दौर में बढ़ गयी हैं ,
उसमे उसके दिल कि बात तो किसी ने
पूछी ही नहीं ,
न कभी जानना चाहा,
नया दौर कितना कुछ
छीन रहा है लोगों से
और बदले में क्या दे रहा है
थोड़ी सी आज़ादी ,
ये थोड़ी आज़ादी कहीं कुछ
ज्यादा तो नहीं ले रही ?
- शाहिद अंसारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें