रविवार, 2 फ़रवरी 2014

माँ का दिल

एक बेचैनी हमेशा रहती है
उसके  दिल में ,

इस बात का डर
सताता रहता है उसे ,
कि घर से दूर उसके बच्चे कैसे हैं ?

खाने पीने के बारे में
जितनी हिदायतें दी जा
सकती हैं ,
वो हर रोज़ फ़ोन पे दे दिया करती है।

वो समझती है कि
दूर रहना वक़्त कि ज़रुरत है ,
पर माँ का दिल कभी मानता है भला

वो तो चाहती है बस यही
कि उसके जिगर के टुकड़े उसके पास रहें।

दूरियाँ जो नए दौर में बढ़ गयी हैं ,
उसमे उसके दिल कि बात तो किसी ने
पूछी ही नहीं ,
न कभी जानना चाहा,

नया दौर कितना कुछ
छीन रहा है लोगों से

और बदले में क्या दे रहा है
थोड़ी सी आज़ादी ,

ये थोड़ी आज़ादी कहीं कुछ
ज्यादा तो नहीं ले रही ?

- शाहिद अंसारी


कोई टिप्पणी नहीं: