सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

ग़ज़ल,

मय जो आती है तो आए चाहे जिस रात आए
वो शब् ए वस्ल आए या शब् ए फ़िराक आए।

आयी जब भी शब् ए फ़िराक उनकी याद हमे,
हम घर तो लौटे मयकदे से मगर नमनाक आये।

नींद आ भी गयी जो आसानी से बिस्तर पे तो,
ख्वाब जगा गए ऐसे जो खौफनाक आये।

पूछा जिसने भी तुमसे हाल ए दिल "शाहिद"
जुबां से लफ्ज़ भी कुछ ज्यादा बेबाक आये।


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