बुधवार, 30 जुलाई 2014

ग़ज़ल,

तुम भी कह लो तुम्हें जो कहना है
हम भी सुन लें और चुप हो जाएँ

ज़िंदगी है , तो उलझनें भी होंगी
क्या करें अगर न खो जाएँ

किसी के हिस्से तो आना है मुझको
नहीं अपने तो तेरे हो जाएँ

रात इतना तो करम कर मुझ पर
ख्वाब आएं न आएं हम सो जाएँ


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