बुधवार, 6 अगस्त 2014

ग़ज़ल,

ज़िंदगी का हिसाब रखते हैं
लोग इसकी किताब  रखते हैं।

जिनको ख्याल है और थोड़ी फ़िक्र भी
वो अपने हिस्से अज़ाब रखते हैं।

अपनी ख्वाहिशें कम नहीं करते
लोग आरज़ूएं बेहिसाब रखते हैं।

लोग उनसे नहीं पूछेंगे सवाल
जो अपने पास जवाब रखते हैं।

वो अंधेरों से फिर नहीं डरते
जो दिलों में आफताब रखते हैं।


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