रविवार, 28 फ़रवरी 2010

वो जो कहता था खुदा पूरी करता है मुरादें  सबकी
आज आ बैठा हैं मैखाने में खुदा खुदा करके

बेमतलब की बातों में क्या रखा है "शाहिद"
अब समझ आया है हर चीज़ का तजरबा करके

अब न वो मंज़र है, न वो लोग, न कैफियत है बाकी
सिर्फ वही दर्द है जो उठ पड़ता है रह रह के

कभी समंदर ,कभी तूफ़ान ,कभी हवाओं से
अब थक गया है उसका जी सभी से लड़ लड़ के

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