मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

गर्मियों की पहली रात

गर्मियों की पहली रात


माथे पर पसीने की कुछ बूँदें,


अलसाई रात 
वो पिछले साल वाली आज याद 
आई,

साँसे तेज़ चलना

और सुबह की ठंडी हवा का
इंतज़ार

सिर्फ उसी वक़्त
कुछ चैन मिलता है,


बिजली का गुल होना,


अक्सर मोमबत्ती के
साथ बैठ के,

परछाइयाँ पकड़ने का वो खेल
आज याद आया,

कितना बदल गया है वक़्त
पिछली गर्मी से इस गर्मी तक,


कुछ बाल और सफ़ेद हो गए हैं,


चेहरे की झुर्रियां
भी कुछ बढ़ गयी हैं,

पिछले साल की वो धूल
भरी आंधी में
उस पेड़ का गिरना भी आज याद आया,

मेरे वजूद का
एक सिरा जिस आग में जल
गया था पिछले 
साल,


कल रात उसका दूसरा सिरा
भी खोया,


तो वो याद आया...


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