रविवार, 22 अप्रैल 2012

शहर

मुस्कुराहटों का शहर,
भीगी चाहतों का शहर,

उलझे ख्वाबों का शहर,

समेट लेता है,

उतार देता है ज़मीन पर,
और कभी आसमान पे चढ़ा देता है...

तोड़ देता है अन्दर तक,

बारिश में फिर न जाने कैसे
कुछ जान भर देता है,

छोड़ने नहीं देता,

चमक दमक ,
रौशनी भरी हुई चारों तरफ,

भुला देता है,
बहुत कुछ,

फिर याद दिलाता है
पुराना शहर,

झूठा कर देता है पुराने ख़्वाबों को,
नए ख्वाब सच कर देता है,

बहकाता है,

उड़ने का आसमान देता है,
पांव तले की ज़मीन खिसका देता है,

ढेरो करतब दिखता है
ये अजीब शहर......
 
    

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