रविवार, 31 मार्च 2013

तुम

तुम नज़र आई उस दिन
कुछ परेशान सी ,

बगल में बैठी जब
तुम रो पड़ी थी ,

सोचा अपना कन्धा दे दे
तुन्हें रोने को ,

और तुम्हारे आंसूं पोछे ,

पर जाने क्या था जो
रोक गया मुझे,

नहीं देखना चाहता तुम्हे
उदास इतना ,

ज़िन्दगी से इतनी मायूसी,

मुझे पता है तकलीफे है
पर किसकी ज़िन्दगी में नहीं है परेशानियाँ ,

तुम्हारी नयी तरह की होंगी,

पर तुम बहादुर बनो,

मुस्कुराओ और कह दो मुश्किलों से
की कहीं और जा बसे,

तुम्हारा दिल वो  जगह नहीं .


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