धुल जो जम गयी है एहसासों पे
जैसे महीनो कोई हलचल न हुई हो
कल अचानक कुछ बूँदें टपक पड़ी
और उनपे लिखी इबारत नज़र आ गयी
एक अरसे पहले अपने हाथों करीने
से कुछ लिख दिया था यूँही;नहीं पता
था वो हम से कुछ ऐसे चिपक जाएगा
तब से कितने सावन गुज़रे पर वो गर्द
कभी साफ़ न हुई.
1 टिप्पणी:
एक से बढ़कर एक ...सीधे दिल पर दस्तक देती हैं
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