ये शहर कभी तो हैरान करता है;
फिर दिल को कभी कभी परेशान करता है
साँसे रोक लेता हूँ मै जब कभी सड़क पे
ये शहर मुझसे जान पहचान करता है
कभी थोड़ी सी जगह के लिए रास्तों में,
न जाने क्यों ये मुझको बेईमान करता है
इतनी भीड़ है कि कोई नहीं देखता ,मै या तुम
ये शहर छुपने का काम आसान करता है
ऐसे वक़्त में जहाँ कोई किसी का नहीं होता;
शहर ये लाखों लोगों पे एहसान करता है
बदल देता है अन्दर तक सबकी रूहों को
शैतान को इंसान, इंसान को शैतान करता है
कभी ख्वाबों को पानी दे के सींचता है;
कभी उसी ज़मीन को रेगिस्तान करता है
2 टिप्पणियां:
साँसे रोक लेता हूँ मै जब कभी सड़क पे
ये शहर मुझसे जान पहचान करता है...
काफी अच्छी बन पड़ी हैं ये लाइनें....अच्छा लिखा है शहीद जी आपने!
shukriya...
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