उन मुठ्ठी भर पलों के नाम
जब मै , मै हुआ करता था,
जब मेरे ख्वाब मेरे थे,
मेरी उम्मीदें मेरी ख्वाहिशें
किसी की गुलाम नहीं थी,
जब सर्द हवा धीरे से कानों में
लोरी सुनाती थी ,
जब सूरज आसमान से मुझे
मुंह चिढ़ता था,
या चाँद की अठखेलियाँ
मुझे वैसी ही लगती थी,
वो मासूमियत
जो हुआ करती थी होंठों पर,
अब गुज़रे वक़्त की बात लगती है.
जब मै , मै हुआ करता था,
जब मेरे ख्वाब मेरे थे,
मेरी उम्मीदें मेरी ख्वाहिशें
किसी की गुलाम नहीं थी,
जब सर्द हवा धीरे से कानों में
लोरी सुनाती थी ,
जब सूरज आसमान से मुझे
मुंह चिढ़ता था,
या चाँद की अठखेलियाँ
मुझे वैसी ही लगती थी,
वो मासूमियत
जो हुआ करती थी होंठों पर,
अब गुज़रे वक़्त की बात लगती है.
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