बुधवार, 27 नवंबर 2013

पुल

कभी कभी लगता है
ये पुल किसलिए बना  रहा हूँ ,

क्या ये पहुँचायेंगे मुझे उस पार

वहाँ जहाँ जाने से सफ़र की
थकान दूर हो जाती है,

क्या  होगा ऐसा कभी?

या फिर ये पुल कभी  पूरे 
ही नहीं  होंगे  ,

और मैं उन में से एक
अधूरे पुल के कोने पर खड़े होकर ,
उड़ जाऊँगा उस पार ,

वहाँ ,
जहाँ से कोई वापस नहीं आता।



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