कभी कभी लगता है
ये पुल किसलिए बना रहा हूँ ,
क्या ये पहुँचायेंगे मुझे उस पार
वहाँ जहाँ जाने से सफ़र की
थकान दूर हो जाती है,
क्या होगा ऐसा कभी?
या फिर ये पुल कभी पूरे
ही नहीं होंगे ,
और मैं उन में से एक
अधूरे पुल के कोने पर खड़े होकर ,
उड़ जाऊँगा उस पार ,
वहाँ ,
जहाँ से कोई वापस नहीं आता।
ये पुल किसलिए बना रहा हूँ ,
क्या ये पहुँचायेंगे मुझे उस पार
वहाँ जहाँ जाने से सफ़र की
थकान दूर हो जाती है,
क्या होगा ऐसा कभी?
या फिर ये पुल कभी पूरे
ही नहीं होंगे ,
और मैं उन में से एक
अधूरे पुल के कोने पर खड़े होकर ,
उड़ जाऊँगा उस पार ,
वहाँ ,
जहाँ से कोई वापस नहीं आता।
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