मुझे मेरे दोस्त ने याद दिलाई
पुरानी बातें
साथ गुज़ारे कुछ पल
लगा जैसे अभी कल ही कि तो बात है
उस सड़क के किनारे जहाँ हम रात को
बैठा करते थे
वो ज़मीन अभी भी कुछ गीली सी होगी
वो छत से तारों को देखते हुए
ज़िन्दगी के ढेरों सपने जो देखे थे
उस वक़्त कभी नहीं लगा कि ये
सपने ,बस सपने ही रह जायेंगे
वो सुबह भागती हुई बस के पीछे दौड़ना
वो शाम को थके हारे वापस लौटना
वो चाय पे सब के साथ की गयी मस्ती मज़ाक
वो रात के खाने पे की गयी बातें बेबाक
सब कुछ एक पुरानी फिल्म की तरह लगता
है , जो चल रही हो फ्लैशबैक में
आज फिर सुबह उठ कर मै अपनी बस
पकड़ना चाहता हूँ
वापस अपने उन्ही दोस्तों के संग
# शाहिद
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