रविवार, 1 अगस्त 2010

दोस्तों के नाम

मुझे मेरे दोस्त ने याद दिलाई
पुरानी बातें

साथ गुज़ारे कुछ पल
लगा जैसे अभी कल ही कि तो बात है

उस सड़क के किनारे जहाँ हम रात को
बैठा करते थे
वो ज़मीन अभी भी कुछ गीली सी होगी

वो छत से तारों को देखते हुए
ज़िन्दगी के ढेरों सपने जो देखे थे
उस वक़्त कभी नहीं लगा कि ये

सपने ,बस सपने ही रह जायेंगे

वो सुबह भागती हुई बस के पीछे दौड़ना
वो शाम को थके हारे वापस लौटना

वो चाय पे सब के साथ की गयी मस्ती मज़ाक
वो रात के खाने पे की गयी बातें बेबाक

सब कुछ एक पुरानी फिल्म की तरह लगता
है  , जो चल रही हो फ्लैशबैक में

आज फिर सुबह उठ कर मै अपनी बस
पकड़ना चाहता हूँ 

वापस अपने उन्ही दोस्तों के संग

 # शाहिद

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