शनिवार, 7 अगस्त 2010

किताब














मेरे साथ बैठ के उसने दो कप चाय पे
अपनी जिंदगी की किताब खोली

कुछ पन्ने पलट के मुझे दिखाने लगा

बीच में कहीं कुछ मेरे आगे से गुज़रा हुआ लगा

उस शाम जब समंदर किनारे बैठ कर
हम लहरों को देख रहे थे

सीप में एक मोती ले आई थी तुम

उस सीप पे पड़ी लकीरें उस किताब में दिखी

मैंने  उस किताब से वो पन्ना फाड़ कर
अपनी जेब में रख लिया

 # शाहिद

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