मेरे साथ बैठ के उसने दो कप चाय पे
अपनी जिंदगी की किताब खोली
कुछ पन्ने पलट के मुझे दिखाने लगा
बीच में कहीं कुछ मेरे आगे से गुज़रा हुआ लगा
उस शाम जब समंदर किनारे बैठ कर
हम लहरों को देख रहे थे
सीप में एक मोती ले आई थी तुम
उस सीप पे पड़ी लकीरें उस किताब में दिखी
मैंने उस किताब से वो पन्ना फाड़ कर
अपनी जेब में रख लिया
# शाहिद
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