मंगलवार, 25 जनवरी 2011

पहचान

पहचान

ढूंढते रहते है सभी
खुद की

दूसरी चीज़ों की भी ताकि
ढूँढने में आसानी हो

पर ये कुछ वैसा ही नहीं
जैसे रेत पर लिखा नाम

जो कुछ पल को तो दिखाई देता है

फिर गायब हो जाता हैं
बहते पानी के साथ

कभी किताबों में एक निशान
छोड़ देते हैं वापस पलट के लौटने के लिए

ज़िन्दगी मगर हमे वो मौका नहीं देती

हर पल मिटाती है हमे
फिर दोबारा बनाने को

जैसे अपनी गलती सुधार रही हो

पहचान कोई हमेशा रहने वाली चीज़ होगी शायद

तभी लोग परेशान रहते है
अपनी पहचान बनाने को

धुंधली सी कभी दिखने
और कभी खो जाने वाली पहचान


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