शनिवार, 20 जुलाई 2013

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हमने दिखाया हाथ तो अनजान हो गयी,
लगता था दो घड़ी का इम्तिहान हो गयी।

वो सारे शहर से लड़ाती रही ज़ुबान ,
जो हमने नाम पूछा , बेजुबान हो गयी।

बात मुश्किल बड़ी थी पर कुछ इस तरह,
वो मुस्कुरा के बोली कि आसान हो गयी।

उसका शहर भी मेरे शहर के करीब था,
जब रास्ता पूछा तो फिर पहचान हो गयी।

 

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