मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

अपना अपना कैदख़ाना ****

कहाँ दिखता है
तारा
टिम टिम सा

यदि हम टकटकी न लगायें,

काले आकाश में,
अनेक तारें होते तो हैं,
पर हम देखने की कोशिश नहीं करते,

हमारी नज़र या तो नीचे है,
या सामने है,

इतनी फुर्सत ही नहीं
कि लेटें और
देखें आकाश की तरफ,

संसार छीन लेता है,
हम सबसे
हमारा मौलिक गुण,

ऊपर देखने का,
टकटकी लगाने का,

अब दुनिया चपटी
और सपाट हो गयी है,

सबसे ऊँची दूरी
हमारी और हमारे घर की छत
की है,

हम बस वही माप पाते हैं,

बस देख पाते हैं,
तीन पंखो वाले
इलेक्ट्रिक फैन को,

उसमें लगे जाला
जो शहर में फैले प्रदूषण
से काला हो गया है,

पहले सबके पास
होती थी एक छत,

जिस पर रात को इकट्ठा लोग
तारे देखते थे,
और देखते थे
कभी ईद का चाँद,

अब सब अपार्टमेंट
में रहते हैं,
यदि छत है भी
तो उस पर जाने की मोहलत ही नहीं,

घर में जलती
ट्यूबलाइट कभी
रात होने ही नहीं देती,

खिड़की पर लगा
परदा कभी दिन होने
ही नहीं देता,

हम सब कैद हैं,
अपने बनाये कैदखानों में,

~ शाहिद 

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