बुधवार, 19 जून 2019

ग़ज़ल

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लरजते होंठों का, आशिक हूँ सुर्ख गालों का
तुम्हें खबर नहीं, तुम्हारा मुंतज़िर हूँ सालों का।

एक तुम्हारी दीद ही से है मुझे उम्मीद वरना,
शिफा करेगा कौन, हम ख़राब हालों का।

खुदा सुनता नहीं फरियाद, मगर तुम तो सुन लो,
वरना शोर बरपेगा चहुँ ओर हमारे नालों का।

कहूँ मैं क्या? , कोई मेरा हाल क्यूँ पूछे ?
कबसे घेरे है मुझे खौफ इन सवालों का ।

बहुत सूनी है बस्ती हुस्न-ओ-इश्क की याँ पर,
अब्र बरसा दो, याँ आकर तुम्हारे बालों का।

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