बुधवार, 23 जून 2010

ग़ज़ल,

ना किसी गली, ना मोड़, ना शहर के लिए
दिल तड़पता भी है तो बस अपने घर के लिए

चाह के भी मै बाक़ी वक़्त कैसे काटूं
चाँद आता भी है आँगन में तो रात भर के लिए
 
दो पल के साथ से ही खुश हो लेता है दिल
कौन देता है साथ यहाँ उम्र भर के लिए

कल अचानक देखा था उन्हें सामने अपने
य़ू लगा वक़्त थम सा गया था पल भर के लिए

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