बोलने के लिए कुछ बात बाक़ी है
दिन गुज़र गए हैं मगर रात बाकी है
बहुत कुछ दे गयी मुझे मगर ऐ ज़िन्दगी
तुझे देने को मेरे पास एक सौगात बाक़ी है
खुश्क मौसम से इतना खौफ मत खाओ
अभी आने को बहुत बरसात बाक़ी है
है सब कुछ ख़त्म हो गया फिर भी ऐ दिल
रूह बाक़ी, जिस्म बाक़ी , मेरे जज़्बात बाक़ी हैं
इन निगाहों को अपने महफूज़ रखो
अभी कुछ होने को यहाँ वाकियात बाक़ी हैं
4 टिप्पणियां:
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
एक आशावादी अच्छी गज़ल ।
है सब कुछ ख़त्म हो गया फिर भी ऐ दिल
रूह बाक़ी, जिस्म बाक़ी , मेरे जज़्बात बाक़ी हैं।
॥ कर्तव्यानि खलु दुःखितैः दुःखनिर्वापणानि ॥
दुःखी होते हैं उन्हें अपना दुःख हल्का करना ही पड़ता है।
बहुत सुंदर रचना। बहुत-बहुत बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
है सब कुछ ख़त्म हो गया फिर भी ऐ दिल
रूह बाक़ी, जिस्म बाक़ी , मेरे जज़्बात बाक़ी हैं
....लाज़वाब! बहुत खूबसूरत गज़ल.
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