सोमवार, 9 मई 2011

ग़ज़ल

सदायें अब भी आती हैं कहीं दिल के कोनो से 
मै उन्हें रोक के कहता हूँ मुझे कुछ दूर चलना है

बुझा दिल है दबी आहें मेरी साँसें भी कहती हैं
बहुत मुश्किल सफ़र है और मुझे कुछ दूर चलना है

कभी रातें कभी कुछ दिन कभी शामें भी ढलती हैं
आज आई सुबह है और मुझे कुछ दूर चलना है

भुला के कब किसी को यहाँ कोई याद आया है
तुम्हे फिर भूल जाने को मुझे कुछ दूर चलना है
 

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