खुद को पूरा करने के
लिए किसी और होना
क्यों ज़रूरी है ?
क्या हम पूरे नहीं हैं
अपने आप में ?
ढूंढते रहते हैं सहारे हम
क्या ये सहारे हमें वाक़ई
दे सकते हैं
लम्बी दूरी तय करने
की ताकत ?
कितनी आसानी से
कह देते हैं कि अकेले
हैं हम ,
और नहीं सामना कर सकते
ज़िंदगी कि मुश्किलों का
क्या मुश्किलें इतनी बड़ी हैं ?
अकेले सामने करें तो शायद
ढेर हो जायेंगे
पर ये टकराहट ही तो भरोसा
जगाती है कि
अगर न टूटे तो ?
अगर नहीं बिखरे और लड़
पाये
तो क्या ये बहुत बड़ी जीत नहीं है ,
विश्वास तभी तो बढ़ता है
जब हम अकेले चलते है
टैगोर भी तो कहते थे ,
"एकला चलो रे "
तो बिना डरे चलते हैं
जीवन तो ऐसे भी नश्वर है ,
ख़त्म होना शुरुआत से
बुरा तो नहीं होगा।
लिए किसी और होना
क्यों ज़रूरी है ?
क्या हम पूरे नहीं हैं
अपने आप में ?
ढूंढते रहते हैं सहारे हम
क्या ये सहारे हमें वाक़ई
दे सकते हैं
लम्बी दूरी तय करने
की ताकत ?
कितनी आसानी से
कह देते हैं कि अकेले
हैं हम ,
और नहीं सामना कर सकते
ज़िंदगी कि मुश्किलों का
क्या मुश्किलें इतनी बड़ी हैं ?
अकेले सामने करें तो शायद
ढेर हो जायेंगे
पर ये टकराहट ही तो भरोसा
जगाती है कि
अगर न टूटे तो ?
अगर नहीं बिखरे और लड़
पाये
तो क्या ये बहुत बड़ी जीत नहीं है ,
विश्वास तभी तो बढ़ता है
जब हम अकेले चलते है
टैगोर भी तो कहते थे ,
"एकला चलो रे "
तो बिना डरे चलते हैं
जीवन तो ऐसे भी नश्वर है ,
ख़त्म होना शुरुआत से
बुरा तो नहीं होगा।
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