शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

ख्वाब

थोड़ी सी तेज़ रफ़्तार
भागने पर मजबूर कर देती है।

ज़िंदगी की रेस में पीछा
करना पड़ता है ख़्वाबों का ,

कुछ ख्वाब बस दिन भर
के लिए होते हैं ,

अगर वक़्त पे उनपे
ध्यान न दिया ,
तो
वो भीड़ में गुम हो जाते हैं।

नए ख्वाब पुरानो
से ज़यादा तेज़ दौड़ते हैं ,

पुराने कुछ अलसा से
जाते है , वक़्त के साथ ,

और फिर अपनी मौत मर जाते हैं।

जिस रफ़्तार से ख्वाब अपना
चेहरा बदलते हैं ,

हमे उनके पीछे टुकटुकी लगाये
ध्यान देना पड़ता है ,

दौड़ना पड़ता है।  

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