१.
शिकायत बहुत है यूँ तो ज़माने से मुझ को ,
मगर इज़हार करके हम वक़्त ज़ाया नहीं करते।
२.
मेरी क़िस्मत चाहे टूटी फूटी हो ,
चाहे जैसी हो मेरे अख्तियार में रहे।
३.
कहाँ उलझे हुए हो ख्यालों में ,
ज़िंदगी नींद में नहीं चलती।
शिकायत बहुत है यूँ तो ज़माने से मुझ को ,
मगर इज़हार करके हम वक़्त ज़ाया नहीं करते।
२.
मेरी क़िस्मत चाहे टूटी फूटी हो ,
चाहे जैसी हो मेरे अख्तियार में रहे।
३.
कहाँ उलझे हुए हो ख्यालों में ,
ज़िंदगी नींद में नहीं चलती।
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