मैं थका हुआ
इक जिस्म हूँ,
जिसमें एक डरी हुई रूह
इंतज़ार कर रही है,
मौत का ।।
इक जिस्म हूँ,
जिसमें एक डरी हुई रूह
इंतज़ार कर रही है,
मौत का ।।
वो आयेगी
बिना बताये
बिना हलचल के
आराम देने ।।
बिना बताये
बिना हलचल के
आराम देने ।।
ये थकान एक दिन
की नहीं
वर्षों की एक टीस है,
जो जमा हो रही है,
रोज़ थोड़ी ज़्यादा ।।
की नहीं
वर्षों की एक टीस है,
जो जमा हो रही है,
रोज़ थोड़ी ज़्यादा ।।
रूह छलनी है
कौन कहता है
कि रूह नज़र नहीं आती ?
कौन कहता है
कि रूह नज़र नहीं आती ?
वो दिखती तो है,
जिग़र
में घुलते खून में ।।
जिग़र
में घुलते खून में ।।
_____शाहिद अंसारी
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