मंगलवार, 12 सितंबर 2017

ग़ज़ल,

दिलकश हैं दिलफरेब हैं दुनिया के मशगले/
आओ न मेरी जाँ तुम्हें कहीं और ले चलें।।
देखो न आसमाँ में वो चाँद कैसा है/
है चाँदनी जिधर तुम्हें उस ओर ले चलें।।
देहली की इन गलियों से उकता गयी हो तुम/
बहलाने को फिर दिल तुम्हें लाहौर ले चलें।।
कहता हूँ इतने प्यार से तो मान जाओ ना /
अच्छा नहीं लगता है कि पुरज़ोर ले चलें।।

____शाहिद अंसारी

कोई टिप्पणी नहीं: