शनिवार, 30 सितंबर 2017

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
भीड़ में
अकेले में,
तब भी जब मैं कुछ और सोच रहा हूँ,
तब भी जब मैं कुछ और कर रहा हूँ,
ताकि तुम्हें  कभी ये न लगे
कि मैं सुन नहीं रहा ,

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें,
जब तुम बोल रही हो,
तब भी जब तुम खामोश हो,

तब जब तुम कुछ कहने का इंतजार कर रही हो,
और तब भी जब कोई नई बात चल रही है तुम्हारे अंदर,

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
सर्दी के मौसम में धूप में बालकनी में बैठ कर,
मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
गर्मी की दोपहर में
पसीने से तर बतर ,
मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
बारिश में भीगते हुए किसी पेड़ के नीचे,

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
उम्र के तीसवें 
चालीसवें
पचासवें साल में 
उसी तरह जैसे
ग़ौर से सुन रहा था तुम्हें
उस पहले दिन जब हम मिले थे,

मैं सुनना चाहता हूँ तुमसे
किस्से कहानियाँ
मुहब्बत की दास्तानें
कविताएँ जो मैंने लिखी
तुम्हारी ज़ुबानी

मैं सुनना चाहता हूँ
तुम्हें
तुम्हारे गुस्से को
तुम्हारे प्यार को
तुम्हारी तकलीफ को
तुम्हारी घबराहट को
तुम्हारे सपनों को
तुम्हारी यादों को

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
हर रोज़
सुबह शाम
रात दिन
बिना थके
बिना रूके

मैं साथी हूँ
तुम्हारी बातों का

तुम साथी हो
मेरी बातों की

मैं और तुम
जब बन जायेंगे
एक किस्सा कहानी
जिसे सुनायेगी हमारी बेटी
अपने बच्चों को

और कहेगी 
कि वो दोनों खूब बातें किया करते थे,
बातें जो कभी खत्म नहीं हुई ,
इस तरह जिये वो दोनों
बातों को सुनते
कहते
करते
जीते
मरते ।।

____शाहिद अंसारी

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